सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

वैलेंटाईन डे....


मन रहा है
आज उत्सव
प्रेम के
आनंद का ,
दायरा जिसका
है सीमित
फूल
तोहफों
चंद का


क्षोभ हृदय का
दबा कर
आज तो
मुस्का ही लें ,
प्रेम का है दिन
बिना झगड़े
इसे
निपटा ही लें ...

दिल में ना हो
फिर भी
खुश तो
खुद को
दिखलाना है
एक दिन की
बात है
इतना तो बस
बहलाना है ...


करने को
शिकवे गिले
है साल
पूरा तो पड़ा ,
आज दिल
मगर
दस्तूर
इस दिन का ,
निभाने पर अड़ा...

झूम लें
और
नाच लें
बस ओढ़ कर
कुछ आवरण ,
कल से
घिसटेंगे
उसी ढर्रे पर
फिर
ये आदी चरण...

प्रेम का
पाखण्ड है बस
प्रेम दिल में
है नहीं ,
बाँध के
इक दिन में ऐसे
प्रेम
टिक सकता नहीं ....

मत करो
संकुचित
हृदय को
फूल
तोहफों मात्र तक ,
प्रेम का
दरिया बहा दो
पहुंचे
स्वयं जो
पात्र तक ...

जी ना पाए
गर जो क्षण क्षण
इस नदी में
डूब कर ,
दिन यूँ
निश्चित
करते रहोगे
प्रेम के ,
फिर ऊब कर ...

जी रहा जो
प्रेममय
हो कर
जहान में
हर निमिष ,
उसको क्या अंतर
दिवस हो कोई
हो कोई भी निश...!!

10 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

वैलेंटाईन डे की हार्दिक शुभकामनायें !

संजय भास्‍कर ने कहा…

कोमल भावों से सजी ..
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बिलकुल सही लिखा आपने.


सादर

vandana gupta ने कहा…

्सही कह रही हैं……………वो ही प्रेम है वरना सब दिखावा है…………प्रेम दिवस की शुभकामनाएँ!

कुमार संतोष ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति ! बहुत ही प्यारी कविता !

हैप्पी वेलेंटाइन डे!

Kailash Sharma ने कहा…

प्रेम का
पाखण्ड है बस
प्रेम दिल में
है नहीं ,
बाँध के
इक दिन में ऐसे
प्रेम
टिक सकता नहीं ....

बहुत सटीक प्रस्तुति..बहुत सुन्दर

बेनामी ने कहा…

बहुत ही उत्तम लिखा है.

विशाल ने कहा…

बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति.

मत करो
संकुचित
हृदय को

आपकी कलम को सलाम.

बेनामी ने कहा…

मुदिता जी,

बहुत अच्छे....इस पोस्ट में कुछ कुछ व्यंग्य की बू लगी.....अच्छी रचना|

Vinesh ने कहा…

हर सांस में प्रेम समाया हो उसके लिए क्या निशा क्या दिवस...क्या प्रेम-दिवस..:) बहुत सुन्दर भाव, पढ़ना अच्छा लगा.