शनिवार, 29 जनवरी 2011

प्राण-प्रतिष्ठा

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प्राण-प्रतिष्ठा कर दी तुमने
मूरत थी पत्थर की भारी
छुआ भावः भीनी दृष्टि से
अंतस को बन प्रेम पुजारी

स्पंदन यूँ पहुंचे मन तक
मलिन रहा अब भाव न कोई
हुआ सुवासित कण कण मन का
टीस रहा अब घाव न कोई

तुमने कोमल मन को पूजा
किया प्रेम का अनुपम अर्चन
अंजुरी भर मैं करूँ आचमन
पुनि पुनि हो जाये मन तर्पण


10 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

वाह मुदिता जी ,
सुबह की खिली खिली धूप जैसे सुंदर भाव -
मन मुदित हो गया -
बधाई एवं शुभकामनायें

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

प्राण-प्रतिष्ठा कर दी तुमने
मूरत थी पत्थर की भारी
छुआ भावः भीनी दृष्टि से
अंतस को बन प्रेम पुजारी

kitni pyari panktiyan hain..:)
khubsurat bhaw..

बेनामी ने कहा…

मुदिता जी,

बहुत प्रेमपूर्ण और सुन्दर अभिव्यक्ति|

विशाल ने कहा…

सच्चे प्रेम को पाने की अनुभूति आपने सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त की है .आप की कलम को शुभ कामनायें.

मुदिता ने कहा…

@ अनुपमा जी

मुकेश जी ,

इमरान जी

एवं sagebob ji

आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया ..

Amrita Tanmay ने कहा…

मुदिता जी , मैं आपकी सभी रचनाओं को अवश्य पढ़ती हूँ ..पर समयाभाव के कारण टिपण्णी नहीं कर पाती हूँ ...इसके लिए क्षमा चाहती हूँ ......बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01- 02- 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.uchcharan.com/

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

समर्पित प्यार की चाशनी में गीत के प्रत्येक शब्द पगे हुए लगे. एक मीठा-मीठा गीत।

Kailash Sharma ने कहा…

प्राण-प्रतिष्ठा कर दी तुमने
मूरत थी पत्थर की भारी
छुआ भावः भीनी दृष्टि से
अंतस को बन प्रेम पुजारी..

कोमल भावों से परिपूर्ण बहुत ही प्रवाहमयी प्रेम गीत..बहुत सुन्दर..

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

प्रेम में पगी प्यारी रचना.... बहुत सुंदर मुदिताजी.....