गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

तेरी आँखों पे लब रख दूँ....


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हँसी होठों की देखो तो 

कहीं धोखा न खा जाना

ग़मों को अश्क़ बनने में

ज़रा सी देर लगती है ....



उदासी में डुबो ख़ुद को,

क्यूँ बैठी हो यूँ तुम जाना !

ख़ुदा को ख़ुद में ढलने में 

ज़रा सी देर लगती है....


तेरी आँखों पे लब रख दूँ, 

के आबे ग़म को पी जाऊँ

तिश्नगी ए रूह बुझने में, 

ज़रा सी देर लगती है....


समझना खुद को ना तन्हा,

कठिन है राह ये माना

सफ़र में साथ मिलने में 

ज़रा सी देर लगती है....


तपिश मेरी मोहब्बत की 

कभी पहुंचेगी तुम तक भी 

हिमाला को पिघलने में 

ज़रा सी देर लगती है....


है वक़्ती बात ,न भूलो

खुशी हो या ग़मे हिज्रां 

कली से फूल खिलने में 

ज़रा सी देर लगती है ....


-मुदिता

30/09/2020

8 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-१०-२०२०) को ''गाँधी-जयंती' चर्चा - ३८३९ पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी

Anita ने कहा…

बेहतरीन

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लाजवाब

Rakesh ने कहा…

वाह

मन की वीणा ने कहा…

उम्दा सृजन।

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

विशाल सिंह (Vishaal Singh) ने कहा…

प्रेम भाव से ओत - प्रोत... समर्पण के इर्द-गिर्द बुनी एवं रची बसी सुन्दर - रोचक और आकर्षक रचना... हार्दिक बधाई

Gajendra Bhatt "हृदयेश" ने कहा…

सफर में साथ मिलने में, ज़रा सी देर लगती है।
... बहुत सुन्दर!