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होना तेरा...तेरे ना होने में
हर्षाये रहता है मुझ को,
एक खुशबू अजानी सी
महकाये रहती है मुझे....
बोसा तेरा नर्म सा
ज़बीं पे मेरी
पिघलाए रहता है मुझको
बेख़ुदी मेरी
ख़ुद से ही
मिलवाए रहती है मुझे...
आगोश तेरा...
मुक्त बाँहों के घेरे में
समाए रहता है मुझको,
इक छुअन कोमल
सिहराये रहती है मुझे.....
एक साया ...अनदेखा सा
लिपटाये रहता है मुझको,
इक धड़कन ,
लेती हुई नाम मेरा
बहलाये रहती है मुझे....
एहसास तेरा इर्द गिर्द अपने
बहकाये रहता है मुझको
सरगोशी नर्म सी
मेरी रूह में
थिरकाये रहती है मुझे .....
2 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 08 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुंदर शृंगार भाध ।
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