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आईना जब जब निहारती हूँ मैं
अक्स उसका ही ढालती हूँ मैं...
रतजगे कह रहे मेरी आँखों के
उसके ख़्वाबों में जागती हूँ मैं....
जाने कूचे से कब गुज़र जाए
रस्ता उसका यूँ ताकती हूँ मैं..
हर सफ़े पे नाम है उसका
यूँ किताबे जीस्त बाँचती हूँ मैं....
अपनी चाहत का असर ना पूछो
जिस्म दो ,इक रूह मानती हूँ मैं....
उम्र-ए-आख़िर में वो मिला मुझको
जिसको जनमों से जानती हूँ मैं ....
6 टिप्पणियां:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02 -06-2019) को "वाकयात कुछ ऐसे " (चर्चा अंक- 3354) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार जून 01, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत खूब
वाह बहुत सुन्दर सृजन
बहुत सुंदर रचना ,सादर
बहुत बढ़िया रचना..
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