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निगाहें शांत
निगाहें शांत
और
स्वर उसका
मौन है ..
सरगोशी
कानों में
फिर कर रहा कौन है....!
खिले नहीं
बगिया में,
जूही या मोगरा ,
साँसों में
महक सी
फिर भर रहा कौन है ...!
साज़ नहीं
दिखता ,
आवाज़ गुम है जैसे,
बन सुर
हृदय का मेरे
फिर बज रहा कौन है ...!
बादल नहीं
फलक पे ,
बरखा भी राह भूली ,
अमृत की
बूंदों जैसा ,
फिर झर रहा कौन है ...!
2 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरत नज़्म .... यह एहसास हो तो बाकी सब व्यर्थ है ...
मुदिता जी,आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए पहले तो क्षमा चाहता हूँ. कुछ ऐसी व्यस्तताएं रहीं के मुझे ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़ा...अब इस हर्जाने की भरपाई आपकी सभी पुरानी रचनाएँ पढ़ कर करूँगा....कमेन्ट भले सब पर न कर पाऊं लेकिन पढूंगा जरूर
आपकी प्रेम में पगी रचना बहुत प्रभावशाली है. बधाई
नीरज
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