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समर्पण
होता है घटित
सहज ही ,
नहीं है यह
कोई क्रिया
किया जाता हो
सप्रयास
जिसे
द्वारा किसी
कर्ता के ....
किया जाता है
कभी त्याग
चढ़ा कर आवरण
समर्पण का
और
होती है चाहत
त्याग के
अभिज्ञान की
सप्रयास किया
अहंकार जनित
छद्म समर्पण
होता है कभी
दान स्वरुप
दानी होने का
दंभ लिए ...
समर्पण
है पिघलना
बिना किसी
प्रयास के,
नहीं है यह
निर्भरता
किसी अन्य पर ..
कितना सुन्दर है
समर्पण,
कितनी असुंदर
निर्भरता...
हैं ना
विचित्र बात
त्याग,
दान
और
अर्पण की...
समर्पण
होता है घटित
सहज ही ,
नहीं है यह
कोई क्रिया
किया जाता हो
सप्रयास
जिसे
द्वारा किसी
कर्ता के ....
किया जाता है
कभी त्याग
चढ़ा कर आवरण
समर्पण का
और
होती है चाहत
त्याग के
अभिज्ञान की
सप्रयास किया
अहंकार जनित
छद्म समर्पण
होता है कभी
दान स्वरुप
दानी होने का
दंभ लिए ...
समर्पण
है पिघलना
बिना किसी
प्रयास के,
नहीं है यह
निर्भरता
किसी अन्य पर ..
कितना सुन्दर है
समर्पण,
कितनी असुंदर
निर्भरता...
हैं ना
विचित्र बात
त्याग,
दान
और
अर्पण की...
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