अब कहाँ हम दूर ए साथी !
राह अपनी जगमगाती
प्रकाश है कृतित्व अपना
तू दिया ....मैं बाती ......!!
यूँ समेटा तू ने खुद में
घुल रहा अस्तित्व मेरा
जो हृदय में है प्रवाहित
सत्व तेरा और मेरा
आ भिगो दूं सीना तेरा
मेरे आंसू ,बनें थाती ......
काल कुछ ना कर पायेगा
हम शक्ति हैं एक दूजे की
तूफां सब सह लिए हैं साजन
दीप्त लौ अब ना बुझेगी
बस आलोक ही ध्येय है अपना
कृष्ण रजनी क्या रुक पाती .....!!
2 टिप्पणियां:
्बेहद उम्दा भावो को सहेजा है।
बहुत ही खूबसूरत कविता :)
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