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राह कठिन
धुंधली सी मंज़िल
लक्ष्य साध बस
बढ़ते जाना
बीच राह
तू डिग मत जाना ...
कर्म ही करना
हाथ में तेरे ,
प्रतिफल की
दुश्चिंता छोड़ो...
धैर्य ना छूटे ,
आस ना टूटे
सतत प्रयास
नहीं बिसराना
बीच राह
तू डिग मत जाना .....
प्रतिबद्धता
प्रति लक्ष्य के ,
देती है
उत्साह
नवऊर्जा ..
छाई हताशा
भंगित आशा
भ्रम में
स्वयं को
मत उलझाना
बीच राह
तू डिग मत जाना .....
संभावनाएं
असीम हैं राही
कर ले गवेषणा
तू मनचाही
उदार हो दृष्टि
घटित हो सृष्टि
हार हृदय तू
मुड़ मत जाना
बीच राह
तू डिग मत जाना.....
सीमित नहीं
उपलब्द्धियां तेरी
खोज स्वयं ही
राहें निज की ..
दृढ़ हो निश्चय
मन हो निर्भय
इक दिन हो
क़दमों में ज़माना
बीच राह
तू डिग मत जाना ..
1 टिप्पणी:
वाह!! फिर से एक सुन्दर सी पोजिटिव एनर्जी वाली कविता!!
कविता का शीर्षक ही कितना अच्छा सन्देश दे रहा है -"डिग मत जाना"
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