शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

पगे चाशनी बोल मगर.....



अजब गजब से रिश्ते देखे
रंग मंच इस दुनिया के
पगे चाशनी बोल मगर
हैं कड़वे अंतस दुनिया के


चरण पखारें, प्रेम जताएं
ना जाने कितने जन के
सीधे,सच्चे के चढ़ा आवरण
कांटे ढकते निज मन के
पीड़ित खुद को साबित करना
चलन हैं इनकी दुनिया के
पगे चाशनी बोल मगर
हैं कड़वे अंतस दुनिया के


बिना रीढ़ के ,बिना नज़र के
जीवन भी क्या जीवन है
अनुमोदन पाने को भ्रम में
समझ लिया अपनापन है
थोथी नींव नहीं सह सकती
बोझिल रिश्ते दुनिया के
पगे चाशनी बोल मगर
हैं कड़वे अंतस दुनिया के

3 टिप्‍पणियां:

Anita ने कहा…

तभी तो शायर प्रदीप कह गए हैं...यह दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है...

कुमार संतोष ने कहा…

Waah bahut khoobsurat rachna.

Aabhaar. . . !!

Kailash Sharma ने कहा…

जीवन के कटु सत्य का बहुत सटीक और सुन्दर चित्रण..बहुत सुन्दर