रविवार, 22 मई 2011

ले ली पेड़ों से हरियाली

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ले ली
पेड़ों से
हरियाली
और
सूरज से लाली ,
जवाकुसुम सा
खिला है चेहरा
तन लचके
जैसे डाली
ले ली
पेड़ों से
हरियाली ..

कोयल से ली
कूहू कूहू
मोर से ले ली
पीहू पीहू
तितली जैसी
उडूं हमेशा
प्रेम में
मैं मतवाली
ले ली
पेड़ों से हरियाली !

खिलूँ
चांदिनी रात सी
अब तो
मन भींगा
बिन बरसात
के अब तो
जबसे लगी
पिया से मेरी
लगन न
छुटने वाली
ले ली
पेड़ों से
हरियाली!

कोमल मन
की आस जगी है
बात पिया की
प्रेम पगी है
खोने का नहीं
भय है जिसका
ऐसी दौलत ये
पा ली
ले ली
पेड़ों से
हरियाली ..

प्रेम के रंग में
डूब गयी है ,
जोगन खुद को
भूल गयी है
साजन के
सब रंगों से
चुनरी कोरी
रंग डाली
ले ली
पेड़ों से
हरियाली ..

9 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kumar ने कहा…

v
प्रेम के रंग में
डूब गयी है ,
जोगन खुद को
भूल गयी है
साजन के
सब रंगों से
चुनरी कोरी
रंग डाली
ले ली
पेड़ों से
हरियाली ..

आपका यह खुद को भूलना,साजन के सब रंगों से कोरी चुनरी रंग डालना मन को मुदित करता है मुदिता जी.आपके प्रेममय हृदय को मेरा हार्दिक नमन.

मेरी नई पोस्ट आपका इंतजार कर रही है.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा रचना..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

प्रेम के रंग में
डूब गयी है ,
जोगन खुद को
भूल गयी है
साजन के
सब रंगों से
चुनरी कोरी
रंग डाली
ले ली
पेड़ों से
हरियाली ..
prem ka rang chhute na

बेनामी ने कहा…

वाह ... बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ।

नीलांश ने कहा…

prakriti ka saanidhya
aur aankhon me intezaar
ye kaun si lehar hai
hain kaun si bayaar

...mudita ji..sunder rachna:)

good wishes

vandana gupta ने कहा…

प्रेम के रंग में
डूब गयी है ,
जोगन खुद को
भूल गयी है
साजन के
सब रंगों से
चुनरी कोरी
रंग डाली
ले ली
पेड़ों से
हरियाली ..

जब साजन के रंग मे चुनरी रंग ली फिर उसके बाद और क्या चाहिये………यही तो अन्तिम सत्य है।

Anita ने कहा…

भक्तिभाव में डूबी हुई मधुर रचना ! मुबारक !

मनोज कुमार ने कहा…

प्रकृति के विभिन्न उपादानों के द्वारा मन के भावों को बड़ी कुशलता से आपने अभिव्यक्त किया है।

Nidhi ने कहा…

अच्छा लिखा है.प्रक्रति और प्रेम दोनों को आपस में गूँथती हुई एक बढ़िया रचना