मंगलवार, 9 नवंबर 2010

राह स्वयं की रोशन रखना ...


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सहज प्रस्फुटित भावों का जब
दमन किया जाता है
स्नेह कलुषित हो उठता है
सम्मान छितर जाता है ..

भिन्न भिन्न संबोधन देकर
रिश्ते हैं जोड़े जाते
निरीह,दीन,याचक बनने को
दमित भाव उकसाते

अंतर बसी दमित वासना
चित्र कल्पित बनाती
चढ़ा भ्रमित शब्दों का रोगन
वृथा पूजनीय दर्शाती

सहज स्वीकार नहीं होते हैं
भाव हृदय के गहरे
अनुकूलन की जड़ें लगाती
सही गलत के पहरे

बंद दीवारों से घिर मानव
चैतन्यहीन हो जाता
चोटिल पा कर अहम् को अपने
भुजंग क्रोधित बन जाता

विषवमन करना फिर उसकी
मात्र प्रतिक्रिया होती
दिशाहीन फुफकार,सर्प की
अभिव्यक्ति भय की होती

अंधकार को मान नियति
तरस स्वयं पर खाते
किरण रोशनी की मिलने पर
चक्षु बंद कर जाते

दिशाहीन ऐसे मानव को
राह कौन दिखाए ?
चेतन करने की कोशिश में
समय क्यूँ व्यर्थ गंवाए!!!

राह स्वयं की रोशन रखना
स्वचैतन्य को पाना
देख समझ अंतरज्योति को
तम होता स्वयं ही मिटाना .....

1 टिप्पणी:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

antar ki vividh chetna ... khoobsurat sanyojan