रविवार, 6 जून 2010

नाम तू लिख दे


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उदासी दिल पे छाई है ,कोई पैगाम तू लिख दे
छुपाना नाम गर चाहे ,यूँही बेनाम तू लिख दे

सफर मेरा कटे तनहा ,अगरचे है यही किस्मत
ना हो ता-उम्र मुमकिन तो , फक़त एक शाम तू लिख दे

सज़ा के मुस्तहिक हैं हम, अगर तेरी निगाहों में
तो ए मोहसिन ,मेरे हमदम ,कोई इलज़ाम तू लिख दे

सुकूँ-ए -दिल मिलेगा , देख लेंगे इक नज़र तुझको
बज़्म में आ कभी मेरी ,बयां कुछ आम तू लिख दे

निगाहों में समेटे हैं , छलकती मय के पैमाने
गज़ल हो जाए इन पर भी ,कलाम-ए जाम तू लिख दे

घुली हैं रूहें ,जिस्मों से गुज़र कर ,ए मेरे मालिक
इन्हें पहचान देने को ,बदन पर नाम तू लिख दे

7 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर, सशक्त व सार्थक लेखन..........शुभकामनाएं।

संजय भास्‍कर ने कहा…

तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

संजय भास्‍कर ने कहा…

kai dino baad aaya hoon blog par

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Gazal pe teri..kuch likh dun..
Kahan ustaad etna hun..
Kahen kaise jo haal-e-dil..
Yahi paigaam tu likh de..

Ashar-dar-har ashar teri..
Gazal utri hai seene main..
Nasha aisa hua maykash..
Ye kaisa jaam, tu likh de..

Jo bhi teri gazal main hai..
Wohi hai tere dil main bhi..
Batana gar munasib ho..
To uska naam tu likh de..

Padhe humne to jabse hain..
Tere "AHSAAS YE MAN KE"..
Yahin par kyon hain aa jaate..
Subah-o-shaam, tu likh de..

DEEPAK..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सज़ा के मुस्तहिक हैं हम, चलो तेरी निगाहों में
नहीं ईनाम की हसरत ,कोई इलज़ाम तू लिख दे


बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है...