शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

भाव कलम से छूट गए ......

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तुम पास नहीं हो जब  साजन
अक्षर तक  मुझसे रूठ गए...
ना छंद सजे ना गीत रचे
सब भाव कलम से छूट गए ....

बरखा,बादल और सावन भी
रास नहीं आये मुझको,
है कुंज आम का लदा हुआ
सुवास नहीं भाये मुझको,
हर शै में लगता है तेरी
यादों के अंकुर फूट गए
ना छंद सजे ना गीत रचे
सब भाव कलम से छूट गए ....

पाती तेरी पढ़ पढ़ कर मैं,
मन को अपने बहलाती हूँ..
दिल दर्द से तडपा जाता है,
मैं अंसुअन से सहलाती हूँ..
सपने ,जिनमें था साथ जिया,
वो,आँख खुली और टूट गए,
ना छंद सजे ना गीत रचे
सब भाव कलम से छूट गए ....


प्रीत संजो पल  पल मन में,
वारा तुझ पर ही तन -मन को ,
काल चक्र के परे सजन
हारा तुम पर ही कण कण को
नैनो में बस तुम ,ओ प्रियतम
निंदिया मेरी क्यूँ लूट गए...
ना छंद सजे ना गीत रचे
सब भाव कलम से छूट गए ....

3 टिप्‍पणियां:

Dinesh ने कहा…

Waha! Mudita ji kya kahadiya apne... bhai bahut sundar kuch kahane ko luv khulta hi nahi apne itni sahajta se sare bhawa vyat kardiya...bahut hi uttam rachna ha.
Badhiyan sweekar ho aur Suvkamnayan..really bahut achi rachna..

Deepak Shukla ने कहा…

नमस्कार..

न छंद सजे न गीत रचे..
सब भाव कलम से छूट गए...

वाह...

यह गीत विरह का दर्द भरा...
है पढ़कर मेरा दर्द बढ़ा...
में भले नहीं हूँ प्रियतमा...
पर दर्द हमें भी यही रहा...
साजन मेरे भी दूर रहे...
सब भाव ह्रदय के टूट गए...

न छंद सजे न गीत रचे..
सब भाव कलम से छूट गए...


दीपक शुक्ल...

Avinash Chandra ने कहा…

waah..sumadhur geet
aur ekdam lay me

main padh saka iske liye aapka bahut bahut aabhar