बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

वो मंज़र

याद है वो मंजर
मेरी नज़रों से
हो कर
अंतर्मन में उतरती
तुम्हारी निगाहें
जिनमें था
वात्सल्य ,
प्रेम ,
और समर्पण

अक्स देखा था
खुद का
आईने सी
उन निगाहों में
माथे पर बूंदे
स्वेद की,
कंपकपाते होठ,
चूड़ी से खेलती
उंगलियाँ और
रक्ताभ से कपोल

हर क्षण जैसे
थम गया था,
आँखों आँखों में
ज़िन्दगी की
सबसे अनमोल बात
कर ली थी मैंने
मौन भी होता है
कभी इतना मुखर
रहस्य ये उस पल
जान लिया था मैंने

2 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

AJEET ने कहा…

Tum itna acha kaise likh leti ho ...just amazing stuff ...real feelings are being pen down here ...I really loved the contents ...

Wish you always write as interesting as Woh Manzar

Ajeet