बुधवार, 20 जनवरी 2010

अनुभूति-शून्यता की


स्थिर उस क्षण का हो जाना
सिमट गया संसार वहीं तब
मुझमें तू और तुझमें हूँ मैं
घटित हुआ अद्वैत यहीं जब

हुआ पुष्प सा तन मन अपना
जड़ता कहीं ना थी भावों में
उत्कंठा भी प्रिय मिलन की
शांत हुई,कसती बाँहों में
हस्ती मिट गयी तेरी मेरी
'मैं' बाकी रह जाता है कब
मुझमें तू और तुझमें मैं हूँ
घटित हुआ अद्वैत यहीं जब......

परम शांति,चहुँ दिशा में
शंख ध्वनि सी थी गुंजारित
देव भी जैसे स्वर्गलोक से
करते स्नेह मन्त्र उच्चारित
विलय हुआ शक्ति में शिव का
पूर्ण किया वर्तुल हमने जब
मुझमें तू और तुझमें मैं हूँ
घटित हुआ अद्वैत यहीं जब......

पूर्ण ऊर्जा नर नारी की
हुई केन्द्रित उर-स्थल में
घटित हो गया ध्यान उसी क्षण
परम शून्य बस था उस पल में
पुरुष -प्रकृति, मिल कर दोनों
प्रेम हो गए ,बाकी क्या अब
मुझमें तू और तुझमें मैं हूँ
घटित हुआ अद्वैत यहीं जब......

जिस्मों का अस्तित्व मिट गया
मिली जो रूहें उनसे हो कर
समा गया विराट उन्ही में
हुए विलीन वो निज को खो कर
परम आत्मा से जुड़ने का
अनुभव हमने जाना है अब
मुझमें तू और तुझमें मैं हूँ
घटित हुआ अद्वैत यहीं जब......

कोई टिप्पणी नहीं: