सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

मासूम

कितने मासूम से ख्याल
आते हैं अक्सर
ज़हन की दीवारों पर
बिखर जाते हैं
बन के रंग
आंखों में
उतर आता है
उन ख्यालों को
जीने का सुकून ..
खिलखिलाहटें ,
मुस्कुराहटें ,
मन से गुज़र कर
आती हैं होठों पर
और कर देती है
वातावरण भी आनंदित
कैसे हो सकते हैं
फिर ऐसे ख्याल विकृत
वो तो हैं बस
निश्छल मासूम
बच्चों के मन जैसे
दिला जाते हैं याद
मुझे भी बचपन
खेले जिसमें खेल
जिस पल खेले
वो पल सच था
नहीं था उसका मेल
जी लें अब भी
गर हम बचपन
सत्य मान इस पल को
बिसरे कटुता
निर्मल हो मन
याद रखे न कल को

1 टिप्पणी:

kavita verma ने कहा…

sach mein kabhi-kabhi vo bachapan ki nischhalata vapas pane ko man karta hai.bahut umda.