शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

प्रीत---(आशु रचना )


सुना था मैंने कहे है ज्ञानी
"भय बिनु प्रीत न होए"
प्रीत भई जब उस मौला से
भय काहे को होए ...

भय काहे को होए रे मौला
मन में लगन लगी जब
हुई दीवानी तन मन बिसरा
डर इस जग से क्या अब..

डर इस जग से क्या अब मौला
प्रेम अगन में तप कर
कुंदन हो गयी नश्वर काया
राम नाम जप जप कर

राम नाम जप जप कर मौला
उर आनंद समाया
प्रेम भावः के सम्मुख भय का
भावः न कोई बच पाया

कोई टिप्पणी नहीं: