बुधवार, 20 मार्च 2024

हँस के मिल लें..

हँस के मिल लें अब रक़ीबों ,अचकचाहट छोड़ दें
भर लें खुद में बस मोहब्बत,तिलमिलाहट छोड़ दें ..

है भले ही जग ये धोखा , हर कदम पे घात है
अहल-ए-दिल कैसे मगर यूँ मुस्कुराहट छोड़ दें ..

इश्क़ में हम डूब के तर जायें हर ग़म से मगर
तेरे संग होने की भी क्या छटपटाहट छोड़ दें ..

हो अमावस ,कितनी भी गहरी सही ,होती रहे
जुगनू बोलो कैसे अपनी..जगमगाहट छोड़ दें..

फंस गए हैं क़ैद में सफ़र-ए ज़मीं पे इस क़दर
क्यों मगर घर लौटने की कसमसाहट छोड़ दें ..

मायने
रक़ीबों-दुश्मनों (enemy)
घात- हमला (attack)

अहल-ए-दिल - प्रेम करने वाले,दिल में इंसानों का दर्द रखने वाले, पवित्र और ईमानदार लोग(kind hearted people)