सोमवार, 26 सितंबर 2022

नूर तेरा …

 

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हर सिम्त है बिखरा

नूर तेरा 

हर शै में

तू ही समाया,

ढूंढ रहे तोहे

मंदिर मस्जिद 

जग पगला भरमाया.....


ओस की बूँदें

हरी दूब पर 

नमी तेरी पलकों की,

पवन के 

हल्के झोंके लाये

महक

तेरी अलकों की....


रंगबिरंगे फूल खिले

सतरंगी 

तेरा चोला

कोयल की 

क़ुहू क़ुहू में जैसे 

तू ही मीठा बोला.....


कण कण

महसूसूं

स्पर्श तेरा,

चहुँ दिशि

पा जाऊँ 

 मैं दर्श तेरा...

5 टिप्‍पणियां:

Onkar Singh 'Vivek' ने कहा…

सुंदर, वाह!

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

बहुत सुन्दर !
सर्वव्यापी परब्रह्म ही करता है, पालक है, संहारक है !

Anita ने कहा…

सुंदर सृजन

अनीता सैनी ने कहा…

वाह!बहुत सुंदर सृजन।

नूपुरं noopuram ने कहा…

"हर ज़र्रा चमकता है अनवारे इलाही से"
यह कविता भी ताज़ा हवा का झोंका है मुदिता !