शुक्रवार, 2 सितंबर 2022

है तू इक ख़ार ….


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वहमों गुमाँ की हद से परे,तुझ पे यूँ  एतबार

मिलने का न था वादा मगर, दिल को इंतज़ार...


तस्सवुर में तेरे गुजरी थी शब,लेते हुए करवट

बेकरार हिज्र में ज्यूँ तेरे वस्ल का करार ...


तू ही तो महकता है हर हर्फ़ से मेरे

तेरी ही तमाज़त से पिघले मेरे अशआर...


लब सी लिए हैं मैंने रवायत से ज़माने की

खामोशियाँ हैं अब मेरी उल्फत का इज़हार...


डूबे हैं इश्क़ में , फिक्र-ए-साहिल क्यों करना

मुबारिक है हमको तो मोहब्बत की मझधार ..


मीठी सी चुभन रूह में जो इश्क़ की हुई

दुनिया कह रही है कि गुल नहीं ,है तू इक ख़ार....


मायने:

वहमों गुमाँ-संशय/doubt 

तसव्वुर-कल्पना/imagination

हिज्र-जुदाई/seperation

वस्ल-मिलन/union

हर्फ़-अक्षर/letter

तमाज़त-आँच/heat

अशआर-शेर का बहुवचन/couplets

रवायत-परम्परा/tradition

उल्फ़त-प्रेम/lovingness

ख़ार-काँटा/thorn

3 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ज़बरदस्त ग़ज़ल ।। हर शेर लाजवाब 👌👌👌

Abhilasha ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल