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दिल ने जो दिल से ठानी है, वो रार मुबारक
जीते तू ही हर बार ,हमें तो हार मुबारक....
इज़हारे मोहब्बत भी, तक़ाज़ों का सिला है,
वल्लाह ये आशिक़ी की हो ,तक़रार मुबारक ....
साहिल से उठ के चल न सके ,साथ वो मेरे
हो मौज ए इश्क़ में हमें, मझधार मुबारक..
तुझको संजो लिया है ,लफ़्ज़ों में छुपा कर
एहसासे मोहब्बत के ये ,अशआर मुबारक....
रूहों की बात करते हैं ,जिस्मों में डूब कर
बुनियाद झूठी पर खड़ा ,संसार मुबारक.....
मशहूर होना ,थी नहीं ख़्वाहिश कभी मेरी
रूहानी सकूँ चैन का ,मेयार मुबारक .....
दरिया में सफ़ीना है , मल्लाह मेरा मौला
माँझी के हाथ जीस्त की, पतवार मुबारक....
3 टिप्पणियां:
दिल ने जो दिल से ठानी है, वो रार मुबारक
जीते तू ही हर बार ,हमें तो हार मुबारक....
उम्दा गजल....प्रभावशाली और असरकारक।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 25 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर
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