रविवार, 6 जनवरी 2019

खुशियों का आगाज़ सुनो !!


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सर्द रातों में
कोहरे की चादर से
ढके माहौल को
धुंधलाती आँखों के परे
महसूसते हुए
होती है सरगोशी अक्सर
कानों में
"मेरी आवाज सुनो"!

यूँ बदहवास बेचैन सी
ढूंढती हो किसे
डाले हुए बोझा
अपने अहम का
दूसरों के वहम का,
कभी तो लौटो
जानिब खुद के,
इस बोझ तले दबे हुए 
"मेरे अल्फ़ाज़ सुनो"!!

ओढ़ लिए हैं क्यों
आवरण,
दूसरों की पसंद के,
नकली फूलों सी सजी हो
किसी गुलदान में,
खिलने दो ,बिखरने दो
गुंचा-ए-रूह को
ना मुरझाओ यूँ
"मेरा एतराज़ सुनो"!!

गुनगुना लो खामोशियों को
गूंज उठे हर सिम्त
सुर तुम्हारे होने का
थिरकते हुए
धड़कनों की ताल पर,
फड़फड़ा कर पंखों को अपने
छू लो न आसमाँ
"मेरी परवाज़ सुनो"!!!

ए मेरी हमनफस,
ए हमनशीं !!
परों सी हो के हल्की
बारिश की बूंदों सी
हो के तरल
थाम के हाथ मेरा
जीस्त का राज़ सुनो
दर्द का साज़ सुनो
खुशियों का आगाज़ सुनो
"मेरी आवाज सुनो"!!!

6 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ८ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

मन की वीणा ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर!
हर दिखावे से दूर हो वास्तविकता की धरातल पर
नरम एहसास बुनों मेरी आवाज़ सुनो ।

Abhilasha ने कहा…

वाह , बेहतरीन रचना

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हर लम्हा जब तक न पुकारे मेरी आवाज सुनो तब तक मेरी आवाज़ सुनो ....
बहुत खूबसूरती से एहसासों को पिरोया है ...

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत ही सुन्दर, खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...

shashi purwar ने कहा…

बहुत सुन्दर कोमल अभिव्यक्ति मेरी आवाज सुनो खूबसूरत अहसास