शनिवार, 12 सितंबर 2009

बयां है ये.......

आँखों से गिरे मोती , जज्बों की ज़ुबां है ये
पलकों में जो पोशीदा , सपनो का बयां है ये

ख्वाबों का बसाया है एक महल वीराने में
पूछे जो कोई कह दो, जन्नत सा मकां है ये

निमकी भी है अश्को की ,शीरा है तब्बस्सुम का
ख्वाबों के रंगी मंज़र ,जज़्बों की दुकां है ये

तस्वीरे -सनम झलके नज़रों से मेरी जैसे
दुनिया की रवायत में मंज़ूर कहाँ है ये

खुदा औ" सनम दोनों ,कुछ फर्क नहीं दिल पे
सजदा करूँ राहों में बस मेरा इमां है ये

लबों से चूमूं ,हर नक्शे-कदम को तेरे
मुझको मेरी जानां. पूजा का निशां है ये

1 टिप्पणी:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

bahut khoobsurat ghazal ,ek ek sher zabardast...mubaarak ho