सुकून आ जायेगा जब
बेचैनियों को मेरी ,
ढूँढा करोगे
इश्क़ में
मुझसा दीवाना
तुम भी ......
**********
न जाने
कितने जन्मों का
उठाये हुए कर्ज़
रूह पर अपनी
चली आती हूँ
बार बार
चुकाने उसको
लेकिन
चुकता नहीं
पुराना कर्ज़
और करती जाती हूँ
उधारी ,
ज़िन्दगी जीते जीते
भावों के आदान प्रदान में ...
जुड़ जाता है
क्रोध
वैमनस्य
निराशा
हताशा
अपेक्षा
कामना
वासना
ईर्ष्या
प्रतिस्पर्धा
अनदेखे
अनजानों के साथ भी
बाँध के गठरी
इतने बोझ की
जा नहीं सकती
दुनिया के
चक्रव्यूह से परे
हे माँ शक्ति !
कर सक्षम मुझको
हो पाऊं साक्षी
करने को विसर्जन
इस गठरी का
और चुका सकूँ
कर्ज़ अपना
हो कर प्रेम
समस्त
अस्तित्व में ,
अश्रु पूरित नैनों से
है बस यही
करबद्ध प्रार्थना
तुझसे ......
########
बरसा आकाश अपने आप
भीगी धरती अपने आप
ज्यूँ तुम थे बरसे
और मैं थी भीगी ....
बूँद ठहरी अपने आप
सहेजा पात ने अपने आप
ज्यूँ तुम ने सहेजा
और मैं थी ठहरी ...
चमका सूरज अपने आप
वाष्पित हुई बूँद अपने आप
ज्यूँ नियति का खेला
और हम थे बिछड़े ....
फिर बरसेगा बादल
अपने आप
फिर ठहरेगी बूँद
अपने आप
होता रहेगा
मिलन बिछोड़ा
अपने आप .....
###########
आँख में कुछ छुपी नमी है क्या
कोई ख्वाहिश सी फिर पली है क्या .....
ऊंचा उड़ने से पहले देख तो ले
तेरे कदमों तले ज़मीं है क्या .......
दावा उनका फ़कीर होने का
दिल में हसरत कोई दबी है क्या......
रिन्द बैठा लिए ख़ाली प्याला
तुझ सी साकी नहीं मिली है क्या......
तेरे आने की मुन्तज़िर हो के
साँस थम थम के फिर चली है क्या......
भँवरे के छूने से खिली है कली
घड़ी बिरहा की फिर टली है क्या .......
सुबह दस्तक सी दे रही शायद
रात तेरे बिन कभी ढली है क्या ........
आईना देख कर अना मेरी
चूर अब भी नहीं हुई है क्या.......
थम सी जाती हैं साँसे
दिख जाते हैं जब वो
गुज़रते हुए
गली से मेरी,
कहीं कर ना लें
महसूस मुझको
छुपा हुआ
दरीचों के पीछे.....
महफ़िल में अपने आने से इक नया रंग आएगा
तुझमें रह जाऊंगी मैं, कुछ तू मेरे संग आएगा
लिख दी है हर नफ़स ,मैंने तो अब नाम तेरे
शायद तुझको भी कभी आशिकी का ढंग आएगा
************
(होम मेकर्स के रोल को लेकर चर्चाएं होती है, यह रचना कुछ पहलुओं को शब्दों में पिरोने का प्रयास है...विषय इससे भी कहीं अधिक विस्तृत और गहन है)
**************
इतना आसान कहाँ था
गृहिणी हो जाना
ईंट गारे की दीवारों को
घर में बदलना
नए परिवेश में
स्वयं की पहचान बनाना
शब्दों से परे व्यवहार से
विश्वास जमाना
अपनी काबिलियत का
भरोसा दिलाना
आसान कहाँ था
एक अपरिचित का
हमसफ़र हो जाना...
पहली पीढ़ी के
जीवन मूल्यों को
सम्मान दिलाना
पुरानी नयी सोचों में
सामंजस्य बिठाना
चार पीढ़ियों का
एक छत तले होने का
सौभाग्य पाना
आसान कहाँ था
सबकी लाड़ली हो जाना.....
बच्चों के बचपन में
खुद जी जाना
डगमगाते क़दमों की
दृढ ज़मीन बन जाना
नन्हीं सी दृष्टि को
आकाश दिखाना
उड़ने में पंखों की
ताक़त बन जाना
आसान कहाँ था
नयी पौध के लिए
प्रेरक हो जाना...
बाहरी लोगों की बातों से
खा कर चोट
कभी खुद ही की
उलझनों का घोट
अवसाद कभी
तो कभी विफलता
भय भी कभी
गर न मिली सफलता
हर स्थिति में
पति व बच्चों का साथ निभाना
मन की सुनना और समझाना
आसान कहाँ था
मनोचिकित्सक हो जाना ...
सीमित चादर में
पैर फैलाना
अपनी शिक्षा
व्यर्थ न गंवाना
कर उपयोग ज्ञान का
निज कार्य की संतुष्टि पाना
परिणामस्वरूप घर में
योगदान अतिरिक्त आय का करना
लगा लगाम फिजूलखर्ची पे
बचत निवेश से
समृद्धि लाना
आसान कहाँ था
वित्त मंत्री का पात्र निभाना ....
बीच व्यस्त इन सबके भी
खुद को न बिसराना
गीत संगीत और
लिखना पढ़ना
शौक सभी पूरे कर पाना
परवाह औरों की
कर सकने ख़ातिर
पहले खुद की परवाह करना
स्वीकर तहे दिल से निज भूलें
क्षमा चाहना
क्षमा भी करना
आसान कहाँ था
'स्वयं हो जाना ....
सच कहती हूँ
आसान कहाँ था गृहिणी हो जाना
बहुत कठिन है 'होममेकर 'होना