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है कुंज आम का लदा हुआ
सुवास नहीं भाये मुझको,
हर शै में लगता है तेरी
यादों के अंकुर फूट गए
ना छंद सजे ना गीत रचे
सब भाव कलम से छूट गए ....
पाती तेरी पढ़ पढ़ कर मैं,
मन को अपने बहलाती हूँ..
दिल दर्द से तडपा जाता है,
मैं अंसुअन से सहलाती हूँ..
सपने ,जिनमें था साथ जिया,
वो,आँख खुली और टूट गए,
ना छंद सजे ना गीत रचे
सब भाव कलम से छूट गए ....
प्रीत संजो पल पल मन में,
वारा तुझ पर ही तन -मन को ,
काल चक्र के परे सजन
हारा तुम पर ही कण कण को
नैनो में बस तुम ,ओ प्रियतम
निंदिया मेरी क्यूँ लूट गए...
ना छंद सजे ना गीत रचे
सब भाव कलम से छूट गए ....
तुम पास नहीं हो जब साजन
अक्षर तक मुझसे रूठ गए...
ना छंद सजे ना गीत रचे
सब भाव कलम से छूट गए ....
बरखा,बादल और सावन भी
रास नहीं आये मुझको,है कुंज आम का लदा हुआ
सुवास नहीं भाये मुझको,
हर शै में लगता है तेरी
यादों के अंकुर फूट गए
ना छंद सजे ना गीत रचे
सब भाव कलम से छूट गए ....
पाती तेरी पढ़ पढ़ कर मैं,
मन को अपने बहलाती हूँ..
दिल दर्द से तडपा जाता है,
मैं अंसुअन से सहलाती हूँ..
सपने ,जिनमें था साथ जिया,
वो,आँख खुली और टूट गए,
ना छंद सजे ना गीत रचे
सब भाव कलम से छूट गए ....
प्रीत संजो पल पल मन में,
वारा तुझ पर ही तन -मन को ,
काल चक्र के परे सजन
हारा तुम पर ही कण कण को
नैनो में बस तुम ,ओ प्रियतम
निंदिया मेरी क्यूँ लूट गए...
ना छंद सजे ना गीत रचे
सब भाव कलम से छूट गए ....