मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

मोहब्बत की ग़ज़ल

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गिला कोई नहीं उनसे , यूँही दिल याद करता है
ज़माने से छुपा कर,इश्क की फ़रियाद करता है

घिरे हैं वो सरे महफ़िल ,टिकी हैं पर नज़र मुझ पे
तबस्सुम उनके लब का ,दिल मेरा आबाद करता है

तस्सवुर में ही जी लें हम , हसीं लम्हे मोहब्बत के
हकीकत में जहां कब,यूँ हमें आज़ाद करता है

सुनाई उनकी धड़कन ने, मोहब्बत की ग़ज़ल जब से
लबो से निकले लफ़्ज़ों का, ना दिल ऐतमाद करता है

खुदा मिल जाएगा खुद में,मोहब्बत में तो डूबो तुम
रे जाहिद क्यूँ हुआ गाफिल अमल बर्बाद करता है.

3 टिप्‍पणियां:

  1. Hi..
    Aha.. Kya baat hai.. Dil khush ho gaya.. Kya sundar gazal kahi aapne..

    Ye dil mera bhi tumse bas..yahi fariyaad karta hai..
    Kaho aisi gazal jisko..jamana yaad karta hai..

    Kabhi 'GALIB' padhe humne.. Kabhi ' KHUSRO' ki gazalen bhi..
    Abhi jo ye gazal dekhi, laga jaise ye thi vaisi..

    Tera har ek ashar aisa..jo dil aabad karta hai..
    Ye dil mera to tumse bas yahi fariyaad karta hai..

    Nice..
    DEEPAK SHUKLA..

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  2. deepak ji

    aapke comment ne to gazal ko bahut ooncha utha diya.. gazab ka comment likhte hain aap.. ek gazal hi ho jaati hai..shukriya

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  3. मतला से आख़री शेर तक बहुत खूबसूरत भाव बिखरे पड़े है समेटना चाहा,, बहुत ज्यादा है,,

    पूरा नहीं समेट पाए इस लिए बाकी समेटने फिर आयेंगे :)

    उम्दा

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