बुधवार, 14 अप्रैल 2010

यात्रा....


####

मंज़िल पाने इस जीवन पथ पर
पथिक असंख्य जुड़ा करते हैं
चल पड़ते संग डग दो डग यूँ
फिर राह निज की मुड़ा करते हैं

कुछ बढ़ जाते पथ पर आगे
कुछ पार्श्व में रह जाते हैं
बंधन कुछ हैं बंधने लगते है
सपने भी सज्जित हो जाते हैं.

थमना मत हो कर के गाफ़िल
साथ कोई आये ना आये
चलना सबको राह स्वयं की
जीवन जड़ ना होने पाए

नदिया-धारा संग पवन जुडी है
बिन बंधन के साथ निभाती
पवन छुए तो धार में लहरें
वेगवती हो कर इठलाती

साथ वही होता है पूरक
अस्तित्व जिसका काल अनन्त से
समदृष्टि से देखे प्रतिपल
हो बंधन मुक्त मिथ्या चक्रंत से

5 टिप्‍पणियां:

  1. आखिरी चार पँक्तियाँ तो कमाल की हैं पूरी कविता के अलावा......

    जवाब देंहटाएं
  2. नदिया-धारा संग पवन जुडी है
    बिन बंधन के साथ निभाती
    पवन छुए तो धार में लहरें
    वेगवती हो कर इठलाती
    कमाल की सोच है...और उन्हें परिभाषित करती सुन्दर पंक्तियाँ...बहुत ही बढ़िया कविता

    जवाब देंहटाएं
  3. Hi..
    Jeevan Path par sang chala jo..
    Wo na chod ke jayega..
    Sahchar jo tera hoga wo..
    Hardam sath nibhayega..
    Door na wo ho paayega..

    Kahan se laati hain aap ye bhav..
    Shabd main piroye jazbaat..

    DEEPAK SHUKLA..

    जवाब देंहटाएं
  4. थमना मत हो कर के गाफ़िल
    साथ कोई आये ना आये
    चलना सबको राह स्वयं की
    जीवन जड़ ना होने पाए

    सटीक सीख देती हुई रचना....बहुत खूबसूरत शब्दों से सजाई है ये कविता....बधाई

    जवाब देंहटाएं