शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

सम्प्रेषण-संबोधन का

खिल उठता है मन ये मेरा
सुन कर ' तुम' संबोधन तेरा

और धडकनें बढ़ जाती हैं
'तुम' जब 'तू' में ढल जाती है

दूर खड़ा पाती हूँ तुमको
'आप' बुलाते तुम जब मुझको

अल्हड हूँ नादाँ हूँ माना
पर हक़ तुम पर इतना जाना

नन्हा सा निश्छल इसरार
कर लूं तुमसे बाँह पसार

लफ़्ज़ों से तुम निश्चित करना
हृदय भाव संप्रेषित करना.....

6 टिप्‍पणियां:

  1. दूर खड़ा पाती हूँ तुमको
    'आप' बुलाते तुम जब मुझको

    बिलकुल सच्ची अभिव्यक्ति...

    लफ़्ज़ों से तुम निश्चित करना
    हृदय भाव संप्रेषित करना.....
    ऐसा ही होना चाहिए...बढ़िया रचना ...

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  2. बिलकुल सच्ची अभिव्यक्ति...

    लफ़्ज़ों से तुम निश्चित करना
    हृदय भाव संप्रेषित करना.....
    ऐसा ही होना चाहिए...बढ़िया रचना ..
    wow !!!!



    bahut sundar rachna he


    shekhar kumawat

    kavyawani.blogspot.com/

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  3. Hi..
    Chhota sa nishchhal esrar..
    Kar lun tumse banh pasar..

    Aha.. Nishchhal prem ka shabdik rupantaran..

    Jis se bhi hota hai pyaar..
    Us se hi hota manuhar..
    Najo nakhre us se saare..
    Us se jeet hai us se haar..

    Nishchhal prem dhkhe aankhon main..
    Bina kahe dil ki baaton main..

    Jis par koi tan man koi haare..
    Us sang sukh dukh sabke saare..

    DEEPAK..

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  4. बहुत खूब ....!!

    आप और तुम का बहुत सुंदर विश्लेष्ण किया आपने ......!!

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  5. bahut hi behtareen rachna..
    padhkar achha laga....
    umeed hai aage bhi achhi rachnayein padhne ko milengi...
    regards
    http://i555.blogspot.com/

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  6. Simply too good.........tum aur aap me kya fark hai, baakhoob bataya aapne

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