गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

मेरे मयखाने में ....


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मयकश तेरा यूँ आना, मेरे मयखाने में
बन बैठा इक अफसाना ,मेरे मयखाने में

जिस्मों की सुराही से,छलके है मय रूह की
नज़रें बनी पैमाना, मेरे मयखाने में

मय रूहों की खिंचती है,रूहों में ही ढलती है
रों रों हुआ रिन्दाना, मेरे मयखाने में

वस्ल तेरा,तेरी साक़ी का ,कुछ ऐसा हुआ जानम
ले थम गया ज़माना , मेरे मयखाने में

तार बज उठे हैं दिल के ,सांसें हुई झंकारित
लब गा रहे तराना , मेरे मयखाने में

सजदे में झुकी साक़ी,ये उसकी इबादत है
तुझको खुदा है माना , मेरे मयखाने में

मदहोश हुई है साक़ी,कैसा मिला ये मयकश
दिल हो गए दीवाने ,मेरे मयखाने में

मयकश हुआ है साक़ी,साक़ी भी अब है मयकश
बदला है यूँ फ़साना, मेरे मयखाने में ........

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