सोमवार, 26 अप्रैल 2010

ध्यान

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नदी किनारे
ध्यान
लगा कर
बगुला जी
पाए
जाते हैं
स्वार्थ-सिद्धि
हेतु
मछली को
यूँ
भरमाये
जाते हैं...

ध्यान
लगाने का
हे प्राणी !!
करता तू
उपक्रम...
व्यर्थ समय
गँवा देता है
कैसा
तुझको भ्रम ??

वृथा विचार
मस्तिष्क
को तेरे
कर देते हैं
व्यस्त ...
ध्यान में
बैठा
सोच सोच कर
तू हो जाता
त्रस्त

साक्ष्य भाव से
से जब
पाया ,
आत्मसत्व
का
ज्ञान..
बिना चेष्टा
हर पल जैसे
घटित
हो गया
ध्यान

कृत्य
कोई हो
ध्यान
लगाओ
मन मानस को
ना
भटकाओ
ध्यान नहीं
जग
छोड़ के
जीना
ध्यान
तो है बस
निमिष में
जीना ....

7 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi khubsurat rachna...
    yun hi likhte rahein aur humein achhi rachnayein dete rahein....
    regards
    http://i555.blogspot.com/

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  2. hi..Dhyan ki khoobsoorat vyakhya...

    Dhyan wo nahi ki,
    duniya ko bhool jayen..
    hum dhyan kar rahe hain..
    ye soch man bhatkayen...

    ekaagr man main hote..
    suvicharon ka hai manthan..
    spandan se dil hai chalta..
    ekaagrata se jeevan..

    Deepak Shukla...

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  3. ध्यान
    तो है बस
    निमिष में
    जीना ....
    बिलकुल सत्य उकेरती रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. -------------------------------------
    mere blog par is baar
    तुम कहाँ हो ? ? ?
    jaroor aayein...
    tippani ka intzaar rahega...
    http://i555.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  5. ध्यान
    तो है बस
    निमिष में
    जीना ....


    bahut hi sateek aur ssundar panktiyaan

    bahut achchha laga ise padhna

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