शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

किस्मत


ये एहसास एक beauty parlour पर एक पुरुष hair dresser को खातूनों के बाल काटते देख कर हुआ था ... Share कर रही हूँ ॥ :)

तरस जाते हैं हम
किसी की जुल्फें
सँवारने को
फिरा के उंगलियाँ...
और एक वो
संवारते हैं
बिखरी लटों को
फंसा के उँगलियाँ..
रश्क होता है हमें...
देख के खातूनों
से घिरा उनको
हम करें तो रुसवाई
मगर वाह ..!!!
हज्जाम भाई,
आपने भी खूब
किस्मत पायी ...!!!!

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

विरहन ..

पहुँचा दे अब
कोई सजन तक
मुझ विरहन की
बतियाँ
सूना सूना सा
दिन लागे
कटती नाही
रतियाँ

कूक भूल गयी
कोयल जैसे
खिले नहीं
बगिया में फूल
ठंडा झोंका
पवन का
मुझको
लगता जैसे
कोई शूल
हाल बतावें
भीगी अँखियाँ
भेज पिया को
पतियाँ
सूना सूना सा
दिन लागे
कटती नाही
रतियाँ

बाट जोहती
अँखियाँ पूछे
दरसन प्रीतम
दोगे कब
हृदय में मेरे
बसने वाले
बाँहों में भर
लोगे कब
सोच पिया की
मीठी बतियाँ
धड़की जाये
छतियां
सूना सूना सा
दिन लागे
कटती नाही
रतियाँ ....
पहुँचा दे अब
कोई सजन तक
मुझ विरहन की
बतियाँ .....

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

छोटे छोटे एहसास

धडकनें गुनगुनाती हैं नज़्म कोई
ना मानेंगी दुनिया की अब रस्म कोई

मदहोश हो रही हैं निगाहें इस कदर
लगी है रिन्दों की ज्यूँ बज़्म कोई

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नज़रों ने
ना जाना तुझको
दिल ने तो
पहचाना तुझको
समझाएं उन
नादानों को क्या
जो कहते
अनजाना तुझको ....

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होने को
साथ तेरे
चुरा लेते हैं
लम्हें
मासूम से..
उठ आते हैं
नज़रों में
लोगों की
संशय
नामालूम से....

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कहा ना
लबो से
दिल का
फ़साना,

बिता दी थी
सदियाँ
यूँही
आज
कल में,

मिली
ज्यूँ ही
नज़रे...
रहे
चुप
दोनों,

जी ली थी
सदियाँ
दो चार
पल में

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नींद से
बाहर आने में
लगता है डर
ख्वाब
तेरे होने का,
निगाहों से
जाये ना गुज़र ....

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सिमटे फासले



सिमट गए हैं
फासले .
रूह औ' जिस्म के,
धडकनें....
धडकनों में
खोयी
जा रही हैं,
समा कर
आगोश में
उनके
दिल है
शादमां ;
निगाहें
मुस्कुरा रही हैं...

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रविवार, 21 फ़रवरी 2010

झिलमिल तारे

तारे
झिलमिल

करते
नभ
में
दे देते
ये
ज्ञान ...
हो कितनी भी
सूक्ष्म
रौशनी

करे तिमिर
सम्मान ...

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

कुछ अशआर

ज़ाहिद बनने की हुई,तमाम उम्र कोशिशें
गुस्ताखियाँ,जिनसे मुसलसल जीतती रही

नज़रें इनायत होगी ना ,गैरों की कभी भी
पशेमां खुद नज़र में,(गर) हयात, बीतती रही

रवायत-ए-जहाँ को निभा जब ना सके हम
तन्ज़ नज़रें ,सुकून-ए-रूह मेरा ,छीनती रही

अपने आगोश की दे दे तू तमाजत मुझको
सर्द आहें ,मेरा दामन-ए-जिगर, चीरती रही


मायने-
जाहिद-संयमी
गुस्ताखियाँ-गलतियाँ
मुसलसल-लगातार
नज़रें-इनायत -दयालु दृष्टि
पशेमां-शर्मिंदा
हयात-ज़िन्दगी
रवायत-ए-जहाँ--दुनिया के रिवाज़/रस्में
तन्ज़-कटाक्ष /तीखी
तमाजत-गर्माहट

हमसफ़र...

चली जा रही थी
यूँही अनमनी सी
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर
अनजान थी डगर
वीरान सा सफ़र
कि टकरा गए थे
एक मोड़ पर अचानक
मैं और तुम....
मिलते ही नज़र
हो गए बेसुध
हर शै से जैसे..
महसूस हो गया
रिश्ता एहसासों का
सत्व जीवन का
और वो धूमिल सा समां
हो उठा रंगीन
चहक उठी दिशायें
महक उठी हवाएं
नहीं रह गए अब
मैं और तुम
चल दिए 'हम '
हाथ में हाथ लिए
मंज़िल की जानिब
हमसफ़र बन कर ....

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

वो मंज़र

याद है वो मंजर
मेरी नज़रों से
हो कर
अंतर्मन में उतरती
तुम्हारी निगाहें
जिनमें था
वात्सल्य ,
प्रेम ,
और समर्पण

अक्स देखा था
खुद का
आईने सी
उन निगाहों में
माथे पर बूंदे
स्वेद की,
कंपकपाते होठ,
चूड़ी से खेलती
उंगलियाँ और
रक्ताभ से कपोल

हर क्षण जैसे
थम गया था,
आँखों आँखों में
ज़िन्दगी की
सबसे अनमोल बात
कर ली थी मैंने
मौन भी होता है
कभी इतना मुखर
रहस्य ये उस पल
जान लिया था मैंने

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

पल पल दिल के पास ...

बज रहा था
गीत कहीं
"पल पल दिल के पास तुम रहती हो "
.....
हर बार इस गीत के साथ
कर जाती है
सरगोशी कानों में
आवाज़ तुम्हारी
गुनगुनाते हुए
इस पंक्ति को
पूछ बैठे थे तुम
"क्यूँ रहती हो ???"....

इन तीन शब्दों में
छिपे असंख्य भाव
बिखर गए थे
रंग बन कर
मेरे गालों पर
तरलता आवाज़ की
भिगो गयी थी
मन मेरा
शांत गहरी नज़रें
उतरती जा रही थी
वजूद में मेरे
और इस प्रश्न की
अनुगूंज आ रही थी
हृदय से मेरे
"पल पल दिल के पास तुम रहते हो ..
क्यूँ रहते हो ?? "

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

मुन्तज़िर नज़रें

सहर होते ही टिक जाती हैं ये
दहलीज पर जा कर
तेरे पैग़ाम की कब से
रही हैं मुन्तज़िर नज़रें

किसी आहट ,किसी जुम्बिश से
हो जाता है दिल गाफ़िल
गली के छोर तक जा कर
पलट आती मेरी नज़रें

ए कासिद !अब तो आ पहुँचा दे
मुझ तक ,कुछ खबर उनकी
कि पथरा जाएँ ना यूँ
राह तकती हुई नज़रें

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

भरोसा

माप दंड तूने गढ़े
निज के हृदय में
मान कर उनको
मुझ पे तेरा भरोसा ..

माप दंडों से पृथक
कुछ भी करूँ मैं
हो अव्यवस्थित
तू लगा देता
इल्ज़ाम मुझ पर
तोड़ देने का तेरा
नाज़ुक भरोसा........

है अहम् तेरा
भरोसे का जनक ही
तुष्ट ना हो वो
तो पाता है तू
खुद को छला सा
दुनिया भर के
तर्क कुतर्क
दे कर करता
साबित है तू
फिर अपराध मेरा

कर भरोसा
खुद पे पहले
दृष्टि को कर
अहम् मुक्त तू
है भरोसा
निज पे निज का
सत्य निश्चित
दूसरे को बाँध
कब फलता भरोसा ..

...

होली के rang

खिल उठे गुलाब
कई ,रुखसारों पर
यादों के झुरमुट से
दिखा होली का मंज़र

अल्हड़ चंचल चपला तरुणी
इठलाती मदमाती
भरे हाथ रंगों गुलाल से
खिल खिल कर बल खाती

छेद रही थी पीठ को उसकी
नज़रों की थी वो बौछार
बिना रंग बिन पिचकारी के
भिगो गया उसे त्यौहार

बरस रहे थे तरल नज़र से
भावों के जो ढेरों रंग
संजो लिया उनको अंतस में
अनभिज्ञ बनी रही बहिरंग

अबीर गुलाल और था टेसू
टिका रंग कोई ना तन पे
बरसे थे जो बिन शब्दों के
खिले रहे वो रंग बस मन पे

स्मृति उन रंगीन लम्हों की
कर जाती है मुझको रंगीं
आँख,गाल ,होठ क्या! रूह भी
हैं सब उन रंगों के संगी

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

रहनुमा

रहा था मन उलझता ,ज़िन्दगी की राहों में
हुए तुम रहनुमा मेरे, चला तेरी पनाहों में

भटकती सोच थी ,और हर तरफ ,इक शोर मशरे का
हुआ जाता था दिल गाफ़िल, उदासी थी निगाहों में

तलाशें कैसे दुनिया में,ख़ुशी होती है किस शै में
सुकूने दिल तो मिलता है ,सिमट के तेरी बाँहों में

चलो जानां ,गुज़ारें हम ,हसीं लम्हें, परस्तिश में
इबादत का समय अपनी,गुज़र जाये ना आहों में

चले हो साथ तुम मेरे,हसीं है ये सफ़र अपना
मंज़िल का पता किसको ,है बस तस्कीन राहों में