सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

छोटे छोटे एहसास

धडकनें गुनगुनाती हैं नज़्म कोई
ना मानेंगी दुनिया की अब रस्म कोई

मदहोश हो रही हैं निगाहें इस कदर
लगी है रिन्दों की ज्यूँ बज़्म कोई

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नज़रों ने
ना जाना तुझको
दिल ने तो
पहचाना तुझको
समझाएं उन
नादानों को क्या
जो कहते
अनजाना तुझको ....

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होने को
साथ तेरे
चुरा लेते हैं
लम्हें
मासूम से..
उठ आते हैं
नज़रों में
लोगों की
संशय
नामालूम से....

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कहा ना
लबो से
दिल का
फ़साना,

बिता दी थी
सदियाँ
यूँही
आज
कल में,

मिली
ज्यूँ ही
नज़रे...
रहे
चुप
दोनों,

जी ली थी
सदियाँ
दो चार
पल में

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नींद से
बाहर आने में
लगता है डर
ख्वाब
तेरे होने का,
निगाहों से
जाये ना गुज़र ....

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सिमटे फासले



सिमट गए हैं
फासले .
रूह औ' जिस्म के,
धडकनें....
धडकनों में
खोयी
जा रही हैं,
समा कर
आगोश में
उनके
दिल है
शादमां ;
निगाहें
मुस्कुरा रही हैं...

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