मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

विरहन ..

पहुँचा दे अब
कोई सजन तक
मुझ विरहन की
बतियाँ
सूना सूना सा
दिन लागे
कटती नाही
रतियाँ

कूक भूल गयी
कोयल जैसे
खिले नहीं
बगिया में फूल
ठंडा झोंका
पवन का
मुझको
लगता जैसे
कोई शूल
हाल बतावें
भीगी अँखियाँ
भेज पिया को
पतियाँ
सूना सूना सा
दिन लागे
कटती नाही
रतियाँ

बाट जोहती
अँखियाँ पूछे
दरसन प्रीतम
दोगे कब
हृदय में मेरे
बसने वाले
बाँहों में भर
लोगे कब
सोच पिया की
मीठी बतियाँ
धड़की जाये
छतियां
सूना सूना सा
दिन लागे
कटती नाही
रतियाँ ....
पहुँचा दे अब
कोई सजन तक
मुझ विरहन की
बतियाँ .....

4 टिप्‍पणियां:

  1. विरह वेदना को सशक्त शब्दों में व्यक्त किया है....अच्छी रचना.

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  2. antarman ke samast bhavon ko dhal diya hai shabdon men......bahut gahre hain ye ehsas....achha laga.

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  3. सच कहा आपने....

    बहुत सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर रचना....

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