सोमवार, 24 अगस्त 2020

मुट्ठी में रेत....


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मुट्ठी से रेत की मानिंद

फिसलते वक़्त में 

तेरे विसाल का 

वो लम्हा

जा गिरा था

रूह की सदफ़ में .....


अब तलक रोशन है

वजूद मेरा 

उस लम्हे के 

गौहर से....!!


सदफ़-सीप

गौहर-मोती

शनिवार, 8 अगस्त 2020

सावन बीतौ जाय सखी री.....

 

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सावन बीतौ जाय सखी री 

सजना क्यूँ नाहिं आय सखी री

नैनन बिरहा झिर झिर अंसुवन

सावन सम बरसाय सखी री ......


भीगी धरा अधीर उदासी

मनुआ मोरा भी तो भीगा 

हर आहट मोरा जियरा धरके

पवन दुआर खटकाय सखी री .....


घिरि घिरि बदरा आवै नभ में

उठि आय हूक मोर जो नाचे

पायल चुप,सूना है अंगना

कोयल शोर मचाय सखी री 

सजना क्यूँ नाहिं आय सखी री 

सावन बीतौ जाय सखी री.......

अनुनाद......

 इक आवाज़ 

हवा के परों पे सवार

छू जाती है रूह को मेरी ,

बेशक्ल बेनाम 

लेकिन बहुत अपनी सी, 

पहचानी हुई सदियों से जैसे...


धड़कता है दिल मेरा 

तरंगों पर उसकी,

उसी लय ताल पर

हो जाती है एकमेव 

आवाज़ मेरी भी...


होता है अनुनाद 

अन्तस् से मेरे 

गुंजा देता है ब्रह्मांड को 

थिरकने लगती है हर शय 

उन्ही स्पंदनों पर

और गुनगुना उठती हूँ मैं 

शब्द किसी और के 


"बिछड़ी हुई रूहों का  

ये मेल सुहाना है ....."

कुछ अशआर यूँही.....


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कर दिए जबसे जज़्बात मिरे,मैंने दफ़न

ज़िक्र मेरा भी सयानों की तरह होता है ...


इल्ज़ाम ए मोहब्बत से बरी है मुजरिम

इश्क़ उसका तो बयानों की तरह होता है ....

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जिस्मों के पहरेदार समझ लेते जो खुद को

रूह कह रही है उनका गुनहगार हो के देख ....


तसव्वुर के आसमां में उड़ानें तो कम नहीं

ज़ुल्फ़ों के पेंचों ख़म में गिरफ़तार हो के देख.....