शनिवार, 8 अगस्त 2020

सावन बीतौ जाय सखी री.....

 

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सावन बीतौ जाय सखी री 

सजना क्यूँ नाहिं आय सखी री

नैनन बिरहा झिर झिर अंसुवन

सावन सम बरसाय सखी री ......


भीगी धरा अधीर उदासी

मनुआ मोरा भी तो भीगा 

हर आहट मोरा जियरा धरके

पवन दुआर खटकाय सखी री .....


घिरि घिरि बदरा आवै नभ में

उठि आय हूक मोर जो नाचे

पायल चुप,सूना है अंगना

कोयल शोर मचाय सखी री 

सजना क्यूँ नाहिं आय सखी री 

सावन बीतौ जाय सखी री.......

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 08 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह! विकल चातक सी करुण पुकार। गोरी के अन्तस की वेदना को सहेजती सुंदर प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई मुदिता जी 😀👌🙏🙏💐🌷

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  3. विरह वेदना सुंदरता से उकेरी है |

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  4. नैनन विरहा झिर झिर अंसुवन
    सावन सम बरसाय सखी री।।
    बहुत सुन्दर सृजन सावन में विरह वेदना को को दर्शाती👌👌👌

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  5. अत्यंत सुंदर सावन गीत जिसमें विरह व्यथा को भावपूर्ण शब्दों में उकेरा गया है...

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  6. 'पवन दुआर खटकाय सखी रे!' वाह! बहुत सुंदर!!!

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