शनिवार, 1 जून 2019

रतजगे कह रहे....


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आईना जब जब निहारती हूँ मैं
अक्स उसका ही ढालती हूँ मैं...

रतजगे कह रहे मेरी आँखों के
उसके ख़्वाबों में जागती हूँ मैं....

जाने कूचे से कब गुज़र जाए
रस्ता उसका यूँ ताकती हूँ मैं..

हर सफ़े पे नाम है उसका
यूँ किताबे जीस्त बाँचती हूँ मैं....

अपनी चाहत का असर ना पूछो
जिस्म दो ,इक रूह मानती हूँ मैं....

उम्र-ए-आख़िर में वो मिला मुझको
जिसको जनमों से जानती हूँ मैं ....

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