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भये पूरन सब अरमान
मेरी 'स्व' से हुई पहचान
अपना कहूँ कि कहूँ पराया
हर चेहरा अनजान
लौट सकी निज सत्व तक
किया है अमृत का अनुपान
मेरी 'स्व' से हुई पहचान....
कैसे जानूँ ,कैसे समझूँ
किससे कैसा नाता है
जुड़ ना पाया हिय से कोई
कोई तो कुछ कुछ भाता है
देखूँ नातों को और उबरूं
क्यूँ व्यर्थ करूँ अभिमान
मेरी 'स्व' से हुई पहचान....
सत्य सार्थक यही है जग में
खुशियाँ बाँटू, खुशियाँ पा लूँ
हर पल जागृत हो कर जी लूँ
हृदय गीत मधुरिम मैं गा लूँ
प्रेम निश्छल सरसे मन मेरा
हो रिश्तों का सन्मान
मेरी 'स्व' से हुई पहचान....
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 18 नवम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना 👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह सुंदर आध्यात्मिक रचना ,
जवाब देंहटाएंस्व को गर पहचान लिया तो
लिया पहचान परमात्मा को
आत्म स्वरूप समझ लिया तो
समझा सारा ही संसार .।।
बहुत सुंदर रचना ।