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चंचल पवन की तान पर
गुनगुना रहे हैं भँवरे
खिली है कली स्पर्श पाकर
फूल भी है संवरे संवरे ....
मदमस्त मधुकर मधुपान से
डोल रहे हैं डाली डाली
कमसिन कलियाँ किलक कर
झूम रहीं हो कर मतवाली ....
दिल है मेरा भ्रमर की गुंजन
गुनगुनाता तेरे लिए
फूल खिला दूँ हर शै में मैं
जो मुस्क़ा दे तू, मेरे लिए....
गुनगुन गूंज गयी बगियन में
महक उठा प्रत्येक कण
अलि अभिसार से पूर्ण हुआ
गुंचों का हर एक क्षण...
बिखर गए जी कर यूँ जीवन
देकर सुगंध और नवरंग
पुष्पों से ही हम सीख सकें
समग्र जीने के सहज ढंग ......
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
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