बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

रूहानी एहसास


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गुज़र जाते हो तुम
यकायक
ज़ेहन की गलियों से ,
झलक जाता है
रूहानी एहसास
मोहब्बत का
वजूद से मेरे .....

सोमवार, 29 अक्टूबर 2018

इक नई इबारत लिखती हूँ


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दर्पण के सम्मुख जब आऊँ
इक नई इबारत लिखती हूँ
कभी किशोरी,कभी यौवना
कभी प्रौढ़ा सी मैं दिखती हूँ...

बाबुल तेरा आँगन भी
मन दर्पण में  दिख जाता है
पल भर में ही सारा बचपन
नैनन में खिल जाता है
लाडो माँ की,पिता की बुलबुल
चहक चहक सी उठती हूँ
कभी किशोरी,कभी यौवना
कभी प्रौढ़ा सी मैं दिखती हूँ...

आँखों में चंचलता गहरी
होंठों पर मुस्कान सजीली
भीगी कलियों सी कोमलता
और चाल बड़ी गर्वीली
साथ सजन का पा कर मैं
सतरंगी सपने बुनती हूँ
कभी किशोरी,कभी यौवना
कभी प्रौढ़ा सी मैं दिखती हूँ...

ऋतुएं कितनी इस जीवन की
जी ली जिस घर आँगन में
उसे संवारूँ, उसे सजाऊँ
खुशियाँ भर मन प्रांगण में
संजो प्रीत रिश्तों की मन में
खुद को अब मैं रचती हूँ
कभी किशोरी,कभी यौवना
कभी प्रौढ़ा सी मैं दिखती हूँ...

शनिवार, 20 अक्टूबर 2018

तो फिर क्या है ...!!



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बेचैनियां तेरी
कर देती हैं
बेचैन मुझ को
मेरे हमदम ,
बता मुझे
यह मोहब्बत नहीं
तो फिर क्या है.....!!

दर्द बहे आँसुओं या
अल्फ़ाज़ में
शिकायत तेरी
तुझी से
कर देना
उल्फ़त नहीं
तो फिर क्या है,,,,,,,,!!

भूल जाते हैं
सब कुछ
आकर के आग़ोश में
सुकूँ ही सुकूँ
मयस्सर हो जहाँ
वो जन्नत नहीं
तो फिर क्या है,,,,!!

हर बात तेरी
होती है महसूस
जस की तस
अल्फ़ाज़ों के परे मुझको
अपनी यह फ़ितरत नहीं
तो फिर क्या है....!!

घुल के
एक दूजे में
बहे जाते हैं लुटाने
खुशियां
सौगातों  की ये
बरकत नहीं
तो फिर क्या है....!!

हर मोड़ पर
मिल जाते हैं फिर फिर
न हो के जुदा
पूछे ये ख़ुदा से
ये उसकी लिखी
अपनी क़िस्मत नहीं
तो फिर क्या है,,,,,,!!

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

छोटे छोटे एहसास


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संजो कर
ख़्वाहिशों में
तुझको,
चलन दुनिया के
बदस्तूर निबाहे
जा रहे हैं हम ..….....

रविवार, 14 अक्टूबर 2018

एकमेव

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दी है दस्तक
हौले से
ब्रह्ममुहूर्त में ,
शरद ने
दर पे वसुधा के ..

भीगी सी हरीतिमा
घुल गयी है
साँसों में मेरी
महकाते हुए
मन प्राण मेरा ...

है प्रयासरत
प्रथम रवि-किरण
भेदने को
किला कुहासे का ....

लपेटे हुए
चादर धुंध की
कर रहे हैं
वृक्ष
उद्घोषणा
शीत के आगमन की..

धुंध और हरियाली
हलके से उजास में
जैसे कर रहे हों
प्रतिबिंबित
मेरे ही
हृदय  के भावों  को ..

एक नम सी अनुभूति
बिछोह की तेरे
पा कर विस्तार
मेरे अंतस से,
मानो पसर गयी है
ओस बन कर
कण कण पर,
और
यूँ हो गयी हूँ
एकमेव मैं
प्रकृति से
अस्तित्व से .......

बुधवार, 10 अक्टूबर 2018

'वो'


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हाथों में 'जोत' लिए
'देवालय' से
बढ़ी थी वो
सुनहरी दमक में
रूप के
परवान चढ़ी थी वो
मारियम सी
गिरजे के बाहर
रोशन करने
कायनात को
खड़ी थी वो
या किन्ही आँखों के
फ्रेम में
तस्वीर सी
जड़ी थी वो....

रविवार, 7 अक्टूबर 2018

यूँही बेबात

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मिल जाना अपना
यूँ ही बेबात
और फिर
कभी ना ख़त्म होने वाली
बातों की शुरुआत,
परे है
हर मन्तक
और
बहस मुसाहिबे से....😊

शनिवार, 6 अक्टूबर 2018

ख़्वाबों की मानिंद


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चलो मिल लेते हैं
मुंदी हुई
पलकों के पीछे
ज़ेहन के गलियारों में
ख़्वाबों की मानिंद ....

न होगी ख़बर
किसी को फिर
अपनी मुलाकात की ....

कुछ कह लेंगे अबोला
कुछ सुन लेंगे अनकहा
बस इतनी सी तो
जुंबिश है हर बात की....

शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2018

इबादत मेरी.....


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नवाजिश करम और इनायत तेरी
तुमको जीना हुआ इबादत मेरी ...

हँसी होठों पे दिल में दर्द लिए
क़ाबिले दाद है लियाकत मेरी ...

रोकना कश्ती को ना है बस में उसके
मौजे सागर से अब है बगावत मेरी ...

लाख आगाह किया वाइज़ ने मुझको
डूबना इश्क में ठहरी थी रवायत मेरी....

हर इक इल्ज़ाम पे सर झुकता है
देगी गवाही खुद ही सदाक़त मेरी...

नाम शामिल था वफादारों में मेरा
आँखों में छलक आयी अदावत मेरी...

बुधवार, 3 अक्टूबर 2018

बेतकल्लुफ दोस्त


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कोई वक़्त 
मुकर्रर कर दे 
यादों का अपनी 
बेवक़्त चली आती हैं 
हवाओं में खुशबू सी
बेतकल्लुफ दोस्त की मानिंद.....