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बेचैनियां तेरी
कर देती हैं
बेचैन मुझ को
मेरे हमदम ,
बता मुझे
यह मोहब्बत नहीं
तो फिर क्या है.....!!
दर्द बहे आँसुओं या
अल्फ़ाज़ में
शिकायत तेरी
तुझी से
कर देना
उल्फ़त नहीं
तो फिर क्या है,,,,,,,,!!
भूल जाते हैं
सब कुछ
आकर के आग़ोश में
सुकूँ ही सुकूँ
मयस्सर हो जहाँ
वो जन्नत नहीं
तो फिर क्या है,,,,!!
हर बात तेरी
होती है महसूस
जस की तस
अल्फ़ाज़ों के परे मुझको
अपनी यह फ़ितरत नहीं
तो फिर क्या है....!!
घुल के
एक दूजे में
बहे जाते हैं लुटाने
खुशियां
सौगातों की ये
बरकत नहीं
तो फिर क्या है....!!
हर मोड़ पर
मिल जाते हैं फिर फिर
न हो के जुदा
पूछे ये ख़ुदा से
ये उसकी लिखी
अपनी क़िस्मत नहीं
तो फिर क्या है,,,,,,!!
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
जवाब देंहटाएंतो फिर क्या...
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 04 नवम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर।।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब...