सोमवार, 5 सितंबर 2011

स्वतंत्रता ...

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नहीं होता है
यदि
सहज विश्वास
किसी को
मुझ पर
तो नहीं है जरूरत
मुझे
उसे बनाने का
प्रयत्न करने की
क्यूंकि ..!!
नहीं खो सकती मैं ,
जीवन को
जीने की
स्वतंत्रता ,
हर पल
उस बनाये हुए
विश्वास के
टूट जाने के
भय में .....

7 टिप्‍पणियां:

  1. गहन सशक्त एहसास अंतर्मन के ....

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  2. बहुत सुंदर भाव और उनकी अद्भुत अभिव्यक्ति ॰

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  3. वाह! मुदिता जी,कमाल की अभिव्यक्ति है आपकी,
    सीधी सीधी,सरल सपाट.

    मेरे ब्लॉग पर आप आयीं,इसके लिए
    बहुत बहुत आभार आपका.

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  4. जीवन जीने की स्वतंत्रता सबका अधिकार है..उसे खोकर किसी के विश्वास को कायम रखना ....मुझे नहीं लगता जिसका विश्वास इतना कमज़ोर हो की वो आजादी से जीने न दे...तो उस का टूटना बेहतर .सुन्दर रचना .

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  5. विश्वास करना है तो करो नहीं तो यह दूसरे की प्रोब्लम है :):) सटीक अभिव्यक्ति

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  6. गहन भाव लिए एक सशक्त रचना ! विश्वास स्वयं पर हो ऊपर वाले पर हो तो बाकी सब खुदबखुद होता चला जाता है....

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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