बुधवार, 29 जून 2011

नहीं घुटेगा फिर ये प्रेम

आकांक्षा ,
अपेक्षा ,
अनुग्रह ,
अधिकार ...
जकड़ लेते हैं
मन को ,
घुट जाता है
प्रेम ..

हो कर जीना
सहज ,
सरल ..
नदिया सा
हो जाओ
तरल ...
छिपा है
प्रकृति के
कण कण में
सीखो उससे
बिछोह और नेह ..
नहीं घुटेगा
फिर ये प्रेम .

नहीं घुटेगा
फिर ये प्रेम ..

6 टिप्‍पणियां:

  1. हो कर जीना सहज ,सरल ..नदिया सा हो जाओ तरल

    बहुत सुन्दर.सरलता ही 'नवधा भक्ति' में अंतिम भक्ति है,जिसका उपदेश राम जी ने शबरी को दिया.
    रामचरितमानस में यह निम्न प्रकार से वर्णित है
    'नवम सरल सब सन छलहीना
    मम भरोस हिय हरस न दीना'
    मुदिता जी, शायद आपकी भी चाहत मेरे द्वारा 'भक्ति' पर ही लिखे जाने की थी. मेरी नई पोस्ट 'सीता जन्म-आध्यात्मिक चिंतन-१'पर जरा आकर
    बताइयेगा कि आपकी चाहत कितनी पूर्ण हुई.

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  2. हो कर जीना सहज ,
    सरल ..
    नदिया सा हो जाओ
    तरल
    anubhooti ke star par aap tak pahunchnaa aasan nahi hai Mudita ji.
    aap samanya sonchone bahut aage ho.

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  3. हो कर जीना
    सहज
    सरल

    अप्रतिम रचना...लेकिन सहज सरल जीना कितना मुश्किल है और कितने कम लोगों को आता है...
    नीरज

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  4. जीना सहज ,सरल ..
    बहुत सुंदर सीख है आपकी इस रचना में

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