सोमवार, 27 जून 2011

बरस रहा घनघोर ..

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नभ आतुर,मिलने धरती से
बरस रहा घनघोर,
जली विरह में वसुधा कितनी
उत्प्लावन चहुँ ओर

सूरज ने था बहुत सताया
कोमल भावों को झुलसाया
धीर धरा सा गर हो मन में,
नहीं चले कभी कोई जोर

निशा अँधेरी जब भी आई
घोर मलिनता मन पर छाई
प्रेम बन गया आस का दीपक
जगती रही हर भोर.

सदियाँ बीती मिलन को अपने
फिर से सजने लगे हैं सपने
शब्दों के गिर गए आवरण
मौन में बदला शोर,
नभ आतुर,मिलने धरती से
बरस रहा घनघोर,
जली विरह में वसुधा कितनी
उत्प्लावन चहुँ ओर

10 टिप्‍पणियां:

  1. नभ आतुर,मिलने धरती से बरस रहा घनघोर ,जली विरह में वसुधा कितनी उत्प्लावन चहुँ ओर........bahut badhiya...nihshabd kar diya aapne.

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  2. प्रेम बन गया
    आस का दीपक
    जगती रही हर भोर...
    नभ आतुर,
    मिलने धरती से
    बरस रहा घनघोर

    आनंद की घनघोर बरसात कर दी है आपने मुदिताजी.
    सुन्दर भावों की झड़ी लगा दी है.

    आप मेरे ब्लॉग पर आयीं और सुन्दर टिपण्णी की कृपा से मुदित कर दिया है मन को आपने.

    बहुत बहुत आभार.

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  3. नभ आतुर,मिलने धरती से बरस रहा घनघोर,
    जली विरह में वसुधा कितनी उत्प्लावन चहुँ ओर

    सूरज ने था बहुत सताया
    कोमल भावों को झुलसाया
    धीर धरा सा गर हो मन में,
    नहीं चले कभी कोई जोर

    निशा अँधेरी जब भी आई
    घोर मलिनता मन पर छाई
    प्रेम बन गया आस का दीपक
    जगती रही हर भोर.

    सदियाँ बीती मिलन को अपने
    फिर से सजने लगे हैं सपने
    शब्दों के गिर गए आवरण मौन में बदला शोर,

    एक बेहतरीन कविता जिसमें मन के भावों को उत्तम अभिव्यक्ति दी गई है।
    (आज फिर अपनी शिकायत छोड़े जा रहा हूं, कि आप कविताओं की पंक्तियं क्यूं तोड़ देती हैं, समझने में दिक़्क़त होती है। और पारा ग्राफ भी नहीं देतीं।)

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  4. अति सुंदर ...
    सखीरी ..पढ़कर ही अब ..
    नाच उठा मन मोर ...!!
    badhai ..Mudita ji ...
    bahut sunder kavita ...

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  5. निशा अँधेरी जब भी आई घोर मलिनता मन पर छाई प्रेम बन गया आस का दीपक जगती रही हर भोर ! बहुत सुंदर भाव भरी पंक्तियाँ !

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  6. आप सभी का बहुत शुक्रिया ..

    @ मनोज जी ,आपकी शिकायत सर आँखों पर ..पोस्ट रिफोर्मेट कर दी है.. पैराग्राफ इस बार जल्दी में छूट गया ब्रेक करना .. कॉपी पेस्ट की गलती थी

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  7. शिकायत वापस लेता हूं।
    धन्यवाद।
    (आप ही बताइए अब अच्छा लग रहा है कि नहीं! :))

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  8. बहुत खूबसूरत रचना ...

    निशा अँधेरी जब भी आई
    घोर मलिनता मन पर छाई
    प्रेम बन गया आस का दीपक
    जगती रही हर भोर.

    आस का दिया जलता रहना चाहिए ...

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  9. प्रेम को आस का दीपक बनना ही चाहिए....................सुन्दर एवं सकारात्मक .

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