#######
होता
घट को
साधना ,
ज्यूँ
कुम्हार के
हाथ ..
ऐसे ही
ढलता,
बनता ,
शिष्य ,
गुरु के
साथ .....
बाहर से
एक हाथ की,
देता
मध्यम
चोट ...
भीतर
दूजे हाथ से
सही लगाए
ओट....
मिटाता भी,
बनाता भी,
गुरु का है
ये धर्म...
करे
संतुलन
दोनों का,
ऐसा उसका
कर्म,,,,
गुरु निखारे
शिष्य को,
दे
भीतर का
साथ ...
काटे,
झूठे आवरण
औ'
अहम् जनित
हर बात ...
मिटने ,
बनने
को रहे ,
तत्पर
जो
हर क्षण...
शिष्य है
सच्चा
बस वही,
जिसमें
ये
लक्षण ......
मिटाता भी,
जवाब देंहटाएंबनाता भी,
गुरु का है
ये धर्म...
करे
संतुलन
दोनों का,
ऐसा उसका
कर्म,,,,
bahut badhiyaa
गुरु शिष्य के बारे मे इतना सुन्दर लिखा है ………एक एक शब्द सार्थक और सटीक्……………यही तो गुरु का काम होता है शिष्य को ठोक बजाकर सही करना और शिष्य के धर्म का भी सही आकलन किया है…………शानदार रचना।
जवाब देंहटाएंsarthak evam satik guru shishya parampara ka aankalan.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंHi..
जवाब देंहटाएंWah ji.. Kya kahne..
Deepak..
गुरू के लक्षण.
जवाब देंहटाएंऔर शिष्य के लक्षण.
बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोये हैं आपने.
आभार.
मैंने इसे दोहों के रूप में पढ़ा है ...बहुत अच्छी प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंहोता
जवाब देंहटाएंघट को
साधना ,
ज्यूँ
कुम्हार के
हाथ ..
ऐसे ही
ढलता,
बनता ,
शिष्य ,
गुरु के
साथ .....
बहुत सुंदर लिखा है -
गुरु-शिष्य संबंधों पर सुन्दर दोहे ,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लगे !
बहुत बढ़िया आनंद आ गया ! अपनी अभिव्यक्ति में आप सफल रहीं हैं ! शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएं