शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

प्रेरणा...


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कितना भी
तिमिर हो
गहन
पहुँच ही जाता है
प्रकाश
जलते हुए
एक
दीप का ,
सुदूर प्रज्ज्वलित
एक और
दीप के समीप ...
करने को
पराजित
अपने मध्य पसरे
अंधकार को ,
बन जाते हैं
प्रेरणा
वो नन्हे दीपक
एक दूजे के लिए,
होने को
आलोकित
अनुरूप
स्वयं की
क्षमता के .....




9 टिप्‍पणियां:

  1. करने को
    पराजित
    अपने मध्य पसरे
    अंधकार को ,
    बन जाते हैं
    प्रेरणा


    दो दीपों के बीच का अन्धकार दूर. वाह ...!!अलग प्रकार से लिखी सुंदर रचना -

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  2. दीप की अपनी महता और सार्थकता है जिन्दगी में ..आपने सुन्दरता से परिभाषित किया है

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  3. वाह ...बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द ।

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  4. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  5. कम शब्दो मे गहरी बात कह दी।

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  6. शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
    सूचनार्थ

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