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कितना भी
तिमिर हो
गहन
पहुँच ही जाता है
प्रकाश
जलते हुए
एक
दीप का ,
सुदूर प्रज्ज्वलित
एक और
दीप के समीप ...
करने को
पराजित
अपने मध्य पसरे
अंधकार को ,
बन जाते हैं
प्रेरणा
वो नन्हे दीपक
एक दूजे के लिए,
होने को
आलोकित
अनुरूप
स्वयं की
क्षमता के .....
कितना भी
तिमिर हो
गहन
पहुँच ही जाता है
प्रकाश
जलते हुए
एक
दीप का ,
सुदूर प्रज्ज्वलित
एक और
दीप के समीप ...
करने को
पराजित
अपने मध्य पसरे
अंधकार को ,
बन जाते हैं
प्रेरणा
वो नन्हे दीपक
एक दूजे के लिए,
होने को
आलोकित
अनुरूप
स्वयं की
क्षमता के .....
gahra andhera prakash kee aahat hai
जवाब देंहटाएंकरने को
जवाब देंहटाएंपराजित
अपने मध्य पसरे
अंधकार को ,
बन जाते हैं
प्रेरणा
दो दीपों के बीच का अन्धकार दूर. वाह ...!!अलग प्रकार से लिखी सुंदर रचना -
दीप की अपनी महता और सार्थकता है जिन्दगी में ..आपने सुन्दरता से परिभाषित किया है
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही सुन्दर शब्द ।
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
कम शब्दो मे गहरी बात कह दी।
जवाब देंहटाएंmanbhavan abhivykti ...badhai
जवाब देंहटाएंसुंदर संदेश ,अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंशायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ