सोमवार, 27 दिसंबर 2010

अभिमान और अवमान ...


*****
अभिमान(अहंकार) और अवमान (तिरस्कार) ऐसी दो स्थितियां हैं जो बहुत से सामाजिक , मानसिक और शारीरिक अपराधों को जन्म देती हैं.. आत्मा के स्तर पर इनका उन्मूलन करते हुए आत्मिक संतुलन आवश्यक है.. इसीको आधार बना कर इन दोनों ही स्थितियों में आत्मिक हनन पर प्रकाश डालने की कोशिश करी है मैंने..कुछ कमी का इंगित या सुझावों का स्वागत है
######################################

समझ श्रेष्ठ
औरों से
निज को
दम्भी हो जाता
इंसान ..
चाहे हरदम
मिले प्रशंसा
भले ही हो
मिथ्या
सम्मान ...
किंचित भी
हो कमी जो
इसमें ,
मान लेता
उसको
अपमान ...
बेहतर हो
कोई और
जो खुद से,
क्रोधित
हो जाता
अभिमान ....
आगे रहने को
फिर सबसे
बन जाता
कपटी
बेईमान ...
राह
सत्य की
छोड़ के पीछे,
पकड़ लेता
राहें
अनजान ....

यही हश्र
अवमान
है करता ,
खुद को
जान ना
पाता है ..
समझ
अयोग्य
स्वयं को
इन्सां,
दीन-हीन
बन
जाता है...
प्रतिभा
कुंठित
हो जाती है ,
पनप नहीं
वो
पाता है ...
आश्रय
अनीति का
है लेता ,
अन्याय से
न लड़
पाता है ...
खातिर
खुद
को
साबित
करने ,
कपटी भी
बन जाता है ...
छल,
पाखण्ड
खुशामद जैसे
हथकंडे
फिर
अपनाता है

विकृत मन के जटिल भाव हैं
अभिमान हो या अवमान
दोनों के चंगुल में विस्मृत
होता मानव का निज ज्ञान

19 टिप्‍पणियां:

  1. अति प्रशंसा घमंड
    अवहेलना संकुचन
    प्रशंसा के शब्द भी हों
    तो प्रोत्साहन मिलता है
    गलती ढंग से बताई जाये
    तो समझ में आती है
    bahut hi achhi rachna hai

    जवाब देंहटाएं
  2. अभिमान और अवमान से होने वाली प्रतिक्रिया पर सटीक शब्द लिखे हैं ..सुन्दर प्रस्तुतिकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. विकृत मन के भाव है दोनों ..
    अभिमान एव अवमान ...
    आपकी कविता इन दोनों ही भावों के परिणामों के प्रति सचेत करती है ..
    बहुत सार्थक सन्देश
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर रचना -
    बहुत सटीक ,
    शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. विकृत मन के जटिल भाव हैं
    अभिमान हो या अवमान
    दोनों के चंगुल में विस्मृत
    होता मानव का निज ज्ञान
    सही है...मानव का विवेक हर लेते हैं ये दोनों ही भाव
    बढ़िया अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम इस रचना में ।

    जवाब देंहटाएं
  8. सत्य के अत्यन्त करीब इस रचना के शिल्प नेमन मोह लिया

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सटीक और सार्थक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर और बेहतरीन रचना,सार्थक प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत मनमोहक.
    सादे शब्दों में बहुत खूबसूरती से आपने बहुत गहरी बात की है.

    आज्ञा हो तो फोलो करना चाहूँगा.

    जवाब देंहटाएं
  12. सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    जवाब देंहटाएं
  13. @ रश्मि जी ,प्रथम प्रतिक्रिया का आभार

    @अरविन्द जी ,दीदी ,वाणी जी ,अनुपमा जी ,दिव्या जी ,मृदुला जी ,कुंवर कुसुमेश जी ,रश्मि रवीजा जी ,सदा जी ,मोहिंदर जी ,कैलाश जी ,गोदियाल जी अनुपमा जी ,हर्षवर्धन जी और डोरोथी जी ..

    आप सभी ने रचना को पसंद किया मैं आभारी हूँ... प्रोत्साहन मिला आप सबकी टिप्पणियों से...

    हर्षवर्धन जी आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग को फोलो करने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  14. मानव मन के स्थिति प्रद्दत उभरते भावों का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्लेषण ....एक-एक शब्द अलग अलग प्रभावी अर्थों को उभारती हुई ... संपूर्णतः अति सुन्दर रचना . आपको बधाई

    जवाब देंहटाएं
  15. आखिर है तो इंसान ही न! भूल का पुतला है ...ज़ाहिर है गल्तियाँ भी करेगा. सुन्दर अभिव्यक्ति, साधुवाद.

    जवाब देंहटाएं