बुधवार, 29 दिसंबर 2010

उस गुलमोहर के तले.....

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उस गुलमोहर के तले
बिता लें आज
फिर कुछ पल ,
मिले थे हम
जहाँ इक रोज़
पहले पहल ...

प्रथम निवेदन
प्रणय का
हुआ था
आँखों ही
आँखों में,
दौड़ गए थे
स्पंदन जिसके
गुलमोहर की
शाखों में ..

किया था
पुष्पों से
अनुमोदन
उसने
हमारे
प्यार का ...
साँसों में
अपनी है
ताज़ा,
एहसास
उस
ख़ुमार का ...

चलो ..!!
भूल कर
दुनिया की
अंतहीन
भागमभाग ,
हम चुरा लें
थोड़ी सी
उन
दग्ध
लाल फूलों से
आग ....

साक्षी बन
गुलमोहर
आशीष दे
इस साथ को ..
छुप के
पहलू में मेरे 
तुम
थाम लेना
हाथ को ...

तेरे माथे की
सलों को
मिटा दें
मेरी ये उंगलियां ...
हों प्रवाहित 
अधरों से मेरे 
तन में तेरे
बिजलियाँ ...

तन औ' मन 
गर क्लांत है तो 
ले ज़रा सा 
तू ठहर
भूल जा 
दुनिया के गम 
और 
जी ले 
खुद को एक पहर

हो उठे
हर कण में
झंकृत
सुर
कोई
संगीत का ...
छेड़ दें
अपने हृदय
बस राग
अपनी प्रीत का ...

भूल जाओ
तुम कहाँ हो
और
मैं भी हूँ कहाँ !!!!
द्वीप अपना
इक बना लें
भूल जाएँ ये जहाँ ....

इन्ही लम्हों से
गुज़र कर
खुद को हम
जी पायेंगे ....
दुनिया
कब छूटी है
किससे
जो हमीं
छुट पाएंगे ...

है हकीकत
साथ अपना
बाकी जीवन कर्म है
खुद की जानिब
लौट आना
ये ही
सच्चा धर्म है ......

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही भावभीनी रचना …………अहसासों की सुन्दर बानगी।

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  2. द्वीप अपना इक बना लें ..भूल जाएँ ये जहाँ ... इससे सुखद ,सुरक्षित ,सुन्दर जगह और क्या हो सकता है? ख्यालों में सही ...साथ , बहुत अच्छी रचना ... आपको शुभकामना

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  3. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (30/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  4. भूल जाओ
    तुम कहाँ हो
    और
    मैं भी हूँ कहाँ !!!!
    द्वीप अपना
    इक बना लें
    भूल जाएँ ये जहाँ ...

    कोमल भावों से पूर्ण सुन्दर प्रेममयी प्रस्तुति..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  5. दुनिया भुलाती हुई सुंदर कविता -
    शुभकामनाएं

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  6. वंदना जी की चर्चा के माध्यम से आपके पास आया... और एक अच्छी कविता पढने को मिली.. बहुत भावभीनी रचना... सुन्दर...

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