मंगलवार, 30 नवंबर 2010

पथिक !! तू राह भटक मत जाना .....

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सफ़र है
लम्बा ,
मंज़िल
अनजानी ,
धीरज खो मत जाना
पथिक !!
तू राह भटक मत जाना

फूल खिलेंगे
अगर सफ़र में
संग * भी होंगे
कभी डगर में
भरमा तू मत जाना
पथिक !!
तू राह भटक मत जाना
(संग=पत्थर )

साथ मिले गर
राह में ऐसा
बंधन डाले
कोई भी कैसा
लिप्सा में डूब न जाना
पथिक !!
तू राह भटक मत जाना

सुन्दर दृश्यों को
तू जीना
प्रेम के अमृत को
भी पीना
लक्ष्य को मत बिसराना
पथिक !!
तू राह भटक मत जाना

राह में ऐसे
मोड़ जो आयें
साथी तुझको
छोड़ भी जाएँ
किंचित दुःख न पाना
पथिक !!
तू राह भटक मत जाना

हो पड़ाव
मनमोहक
कोई
जी लेना
हर इच्छा
सोयी
दमित न मन कर जाना
पथिक !!
तू राह भटक मत जाना

सहज
सरल
रहना
अभीष्ट है
साथ सदा
रहता वो
इष्ट है
भीतर है उसको पाना
पथिक !!
तू राह भटक मत जाना .....






10 टिप्‍पणियां:

  1. बिना भटके जाना तो थोड़ा मुश्किल है, लेकिन अगर जो बिना भटके पहुँच गया मंजिल तक, तो फिर उसके कहने ही क्या...
    बहुत सुन्दर :)

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  2. वाह वाह वाह …………लयबद्ध कविता प्रेरित करती है मंज़िल को पाने को……………एक बेहद उम्दा, शानदार , लाजवाब प्रस्तुति……………बहुत ही पसन्द आयी।

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  3. बेहद प्रेरक रचना...सुन्दर शब्द और भाव लिए हुए...वाह...

    नीरज

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  4. सार्थक सन्देश देती ..लय बद्ध सुन्दर रचना ...

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  5. बहोत ही सुन्दर प्रस्तुति ...........

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  6. सुन्दर लयबद्ध और भाव प्रवण गीत. आभार

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  7. उचित सन्देश लिए
    प्रेरणादायक रचना ...
    वाह !!

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  8. अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति है. चौथे छंद में लगातार दो बार “भी” शब्द का प्रयोग हुआ है जिसे इस प्रकार लिखना शायद ज्यादा अच्छा लगे.
    “सुन्दर दृश्यों को तुम जीना
    प्रेम के अमृत को भी पीना” इसी प्रकार पांचवें छंद में जो दो बार “भी” शब्द प्रयुक्त हुआ है उसे भी इस प्रकार लिखना उचित हो सकता है.
    “राह में ऐसे मोड गर आएं
    साथी तुझको छोड़ भी जाएँ” ये सुझाव मात्र रचना सौंदर्य को ही प्रभावित कर सकते हैं इसकी संकल्पना और भावों को नहीं...जो वैसे ही श्रेष्ठ जान पड़ते हैं.

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  9. अश्विनी जी ..
    बहुत बहुत शुक्रिया इन सुझावों का....निस्संदेह शिल्प का सौंदर्य बढ़ेगा इससे....

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