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रात की
ख़ामोशी में,
जगती
मेरी
तन्हाइयाँ...
बंद पलकों में
सिमटती ,
अनगिनत
परछाइयाँ ...
उन पलों में ,
नर्म सरगोशी
तेरी आवाज़ की...
छेड़ देती
जैसे
रग रग में मेरी
शहनाइयाँ .....
रात की
ख़ामोशी में,
जगती
मेरी
तन्हाइयाँ...
बंद पलकों में
सिमटती ,
अनगिनत
परछाइयाँ ...
उन पलों में ,
नर्म सरगोशी
तेरी आवाज़ की...
छेड़ देती
जैसे
रग रग में मेरी
शहनाइयाँ .....
waah
जवाब देंहटाएंबेहद अच्छी और रूमानी रचना के लिए ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें...शब्दों से कल्पना का अद्भुत संसार रच दिया है आपने...वाह...
जवाब देंहटाएंनीरज